Friday, July 29, 2011

दो घंटे, दो कप चाय, दो प्रकरण, नतीजा सिफर


     तहसीलदार के कार्यालय का आंखों देखा हाल
     
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          होठों पर गहरी लिपस्टिक,  लिपा-पुता चेहरा, करीने से साड़ी पहने हुई एक महिला नेत्री तहसीलदार के कार्यालय में आकर्षक भाव भंगिमाओं के साथ प्रवेश करती है। अपनी मस्त अदाओं से मानो तहसीलदार को सम्मोहित कर रही हो। उसके साथ आयी एक दर्जन अन्य महिलाओं के होठों पर भी गहरी लिपस्टिक लगी थी। महिला नेत्री तहसीलदार को अपने क्षेत्र की समस्या ऐसे बताने लगी, जैसे कोई सुंदरी अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए प्रपंच रच रही हो। महिला के प्रश्नों के जवाब भी सुडौल व आकर्षक दिखने वाले तहसीलदार भी अनूठे अंदाज में दे रहे थे।
महिला नेत्री ने पूछा, सर फोटो पहचान पत्र नहीं बन रहे हैं।
तहसीलदार बोले- मैडम आप जानती हैं। फोटो पहचान पत्र न शासन बनाता है और न प्रशासन। निर्वाचन आयोग बनाता है।
इस जवाब पर महिला नेत्री अभिनेत्री की तरह पीछे मुड़ी बोली, समस्या और भी है। झट से बोली, राशन सभी को नहीं मिलता है, तो यह राशन कहां जाता होगा?
तुरंत तहसीलदार ने एक अधिकारी को फोन किया, कारण जानना चाहा। उनके चेहरे के हाव-भाव से लग रहा था कि मानो समस्या अत्यधिक जटिल है। इसका समाधान खोजना तहसील स्तर तो छोडिय़े जिला स्तर पर भी संभव नहीं।
हाजिरजवाब तहसीलदार को कोई न कोई जवाब तो देना ही था, बोले, अगली बार जब आप शिकायत करने आयेंगी, तब आसपास के क्षेत्र की भी समस्या पता कर लेना। हो सकता है, यह समस्या केवल आप की ही नहीं, बल्कि सभी लोगों की हो, तब आप खुद समझ सकती हैं।
कुशल प्रशासक के तौर पर तहसीलदार के इस अजीबोगरीब उत्तर से भले ही महिला नेत्री व उसके साथी आपस में बड़बड़ाते हुए दरवाजे से बाहर चली गयी। इससे तहसीलदार की बला तो टल गयी लेकिन समस्या का समाधान तो नहीं हुआ। इतने में गहरी सांस लेते हुए तहसीलदार बोले- समस्या ट्रांसफर हो गयी यानि कि बला टल गयी। इतने में महिला नेत्री के गांव के ग्राम प्रधान भी वहां मौजूद थे, वह बोल पड़े, समस्या तो है, समाधान इतना आसान नहीं। दुकानदार भी मक्कार है।
दूसरा प्रकरण: तहसीलदार से जान-पहचान के चलते मैं भी एक कार्य के लिए उनके पास गया था। पत्रकार होने के नाते उन्होंने मुझे अपने निकट की कुर्सी पर बैठाया। तुरंत चाय का आर्डर दिया। मैंने भी उन्हें एक साथी के भाई का स्थायी निवास प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए रसीद दी। उन्होंने कार्य होने का भरोसा जताया। खैर, मैं भी आश्वस्त था कि जब उनके निकट बैठा हूं तो कार्य हो ही जाएगा। बातचीत, लोगों की समस्या सुनने के साथ ही एक घंटा कब व्यतीत हुआ पता ही नहीं चला, फिर मैंने कार्य के बारे में पूछा। तहसीलदार बोले, हां, हां जोशी जी कार्य हो जाएगा। फिर उन्होंने चाय का आर्डर दिया। इस बीच मेरी जैसी समस्या के दर्जनों लोग आये। उनको तीन बजे बाद आने को कह दिया गया था। जब दूसरी कप चाय पी ली तो मैंने कहा, भाईसाब बताइये, अभी और कितना समय लगेगा? उन्होंने कहा, जोशी जी आप मुझे साढ़े चार बजे फोन करें। मैं आपको बता दूंगा। कार्य होने की प्रत्याशा में मैं वहां से चल दिया। मैंने साढ़े चार बजे फोन किया तो साहब मिटिंग में थे। छह बजे फिर फोन किया तो उन्होंने बताया, भाई एसडीएम साहब रामनगर से सात बजे चलेंगे। मैंने पूछा, भाईसाहब, कल देहरादून में सुबह 10 से काउंसिलिंग है। इसके लिए स्थायी निवास प्रमाण पत्र की आवश्यकता है। शाम को आठ बजे ट्रेन है। अब कैसे होगा? उन्होंने कहा एफिडेविट लगा दीजिए, 10 दिन के भीतर जारी कर दूंगा।
तहसीलदार की स्मार्टनेस से मैं तो उनसे अधिक तो कुछ नहीं कह सका लेकिन अपने राज्य की विसंगतियों पर सोचने को मजबूर हो गया। पहले पटवारियों के हड़ताल के चलते स्थायी निवास प्रमाण पत्र नहीं बना था, जब जरुरत थी मुझ जैसे तमाम लोग तहसील पहुंचे। उन्हें उस दिन स्थायी निवास प्रमाण पत्र हासिल करना जरूरी था। दिन भर लोगों ने माथापच्ची की। जब निराशा मिली तो शाम को काउंसिलिंग के लिए देहरादून की ओर चल दिये। दो घंटे में दो कप चाय और दो प्रकरण तो महज बानगी भर हैं। इस तरह के करीब एक दर्जन से अधिक प्रकरण इस बीच में मेरे आंखों के सामने से गुजरे। अधिकांश समस्याओं में समाधान तो नहीं लेकिन लोगों का समय बर्बाद हो गया।
भारत में अज्ञानता भी एक बड़ी वजह है, इस बीच कई ऐसे लोग वहां पहुंचे, जिन्हें दूसरे अधिकारियों व कर्मचारियों के पास जाना था, वे तहसीलदार से अनावश्यक बहस कर रहे थे। इस तरह के बेमतलब व अनावश्यक बहस से तहसीलदार की खीज भी स्वाभाविक प्रतीत हो रही थी।
               जय हिन्द

Friday, July 22, 2011

मीडिया: करे कोई, भरे कोई


       समाज में चौथा स्तंभ का दर्जा हासिल है मीडिया को। बहुत पावरफुल है मीडिया। मीडिया की आड़ में कुछ भी किया जा सकता है। खासकर ऐसा कार्य, जिसे सामान्य तरीके से अंजाम नहीं दिया जा सकता है। इसमें भले ही किसी तरह का कुकृत्य हो या दलाली। इस तरह का अवैध कार्य केवल बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे-छोटे शहरों में भी मीडिया की आड़ में धड़ल्ले से हो रहा है। कुमाऊं का प्रमुख शहर हल्द्वानी भी इसकी चपेट में है। पिछले दिनों सहायक पुलिस अधीक्षक पी रेणुका देवी ने एक सैक्स रैकेट का पर्दाफाश किया। शहर की अच्छी-खासी आबादी वाले कॉलोनी में लंबे समय से जिस्मफरोशी का धंधा चल रहा था। जब इस धंधे में लिप्त महिला संचालक को पकड़ा तो उसने खुलेआम इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े एक पत्रकार का नाम लिया। उसने यहां तक कह डाला कि यह पत्रकार पैसा तो लेता था, साथ ही जिस्मफरोशी के धंधे में भी था। इसमें कुछ पुलिस कर्मी भी संलिप्त थे। खबर शहर के सभी प्रमुख समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित हुई, लेकिन खबरों में संबंधित पत्रकार का नाम नहीं लिखा गया। इसके चलते मीडिया कर्मी एक दूसरे से संबंधित मीडिया कर्मी के बारे में जानने को उत्सुक रहे। पूरे कुमाऊं में इस तरह की चर्चा रही कि आखिर मीडिया कर्मियों को ऐसा करने की क्या जरुरत आन पड़ी होगी। जब समाज के बुद्धिजीवी वर्ग की श्रेणी में आने वाले लोगों पर ऐसे आरोप लगेंगे तो, इससे मीडिया के प्रति समाज में क्या संदेश जाएगा? क्योंकि इस तरह के कुकृत्य से लेकर दलाली तक के कार्य कुछ तथाकथित लोग मीडिया के आड़ में करते रहते हैं। ऐसे ही लोग अक्सर अपने को पत्रकार होने का दंभ भरते रहतेे हैं। हेकड़ी दिखाकर किसी को डराते हैं तो किसी से वसूली कर लेते हैं। इस तरह के चंद लोगों से मीडिया की साख पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है। ऐसे कथित मीडिया कर्मियों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस-प्रशासन भी आगे नहीं आता है। क्योंकि, ऐसे कथित मीडियाकर्मी पुलिस व प्रशासन के अपने जैसे ही भ्रष्ट लोगों के साथ सांठगांठ किये रहते हैं, जिसके चलते मनमाफिक कार्य को अंजाम दिया जा सके।