Saturday, November 10, 2012

मिठाई जरूरी भी मजबूरी भी



                
मिठाई
               अगर आप मिठाई की दुकान चलाना चाहते हैं तो सावधान। मिठाई बनाना तो आसान हो सकता है लेकिन बेचना बहुत मुश्किल हो जाएगा। आप शुद्ध मिठाई बेचेंगे तो कम समय से अधिक पैसा कमाने की चिंता या फिर मिलावटी बेचेंगे तो कम समय में सेठ बनने की महत्वाकांक्षा। आखिर बड़ी मुश्किल लेकिन कुछ शातिर किस्म के लोग व्यवस्था की 'आंखो' में धूल झोंककर काम को आसान भी बना देते हैं।
आइए जानते हैं, कैसे बनेंगे आप मिठाई वाले। सबसे पहले दुकान लेनी होगी। लाइसेंस लेना होगा। इसके लिए खाद्य सुरक्षा अधिकारी की खुशामद करनी होगी। फिर बाट-मांप विभाग की ओर से तराजू व बांट के लिए प्रमाण पत्र लेने की झिकझिक होगी। सेल टेक्स व इनकम टेक्स विभाग का भी विशेष ध्यान रखना होगा। संबंधित चौकी से जुड़े पुलिस कर्मियों को भी मीठा सलाम करना होगा। प्रशासनिक अधिकारियों का भी समय-समय पर मुंह मीठा करना होगा। माफिया, गुंडों व अराजक तत्वों के आक्रोश को शांत करने के लिए मिठाई का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष उपयोग करना होगा। इसके अलावा समाज के कथित समाजसेवी भी पता नहीं कब सूचना अधिकार के तहत सेल-परचेज की सूचना मांग लेंगे। इसके लिए भी मीठा-मीठा जपना होगा। छुटभैये नेता अगर किसी के गले में माला डाल दी जाए तो वहां भी मिठाई पहुंचानी पड़ेगी। यह सब जरूरी- मजबूरी है, इसके अलावा मांगने वाले भी कम नहीं। कभी देवी के लिए तो कभी देवता के लिए मांगने वाले पहुंच जायेंगे। कभी तो स्वयं ही दान करना होगा। अगर यह सब करने की कला में माहिर हो तो मिठाई की दुकान खोल लीजिए। इस स्थिति में मिठाई की दुकान वाले भी जांच करने वालों को ही मिलावटी मिठाई का स्वाद चखा देते हैं। फिर भी कभी-कभार अखबारों में खबर छप जाती है तो खाद्य सुरक्षा अधिकारी सेंपल लेने के बहाने पहुंच जाते हैं। सेंपल लेते तो हैं, अगर सेटिंग हो गई तो ठीक है, उसे लैब तक भी सेट कर लेंगे, सेटिंग नहीं हुई तो जांच चलती रहेगी। दीपावली का त्योहार है, मिठाई खानी नहीं भी है तो भेंट तो करनी ही है। इसलिए खरीदनी भी जरूरी है। मां लक्ष्मी से यही निवेदन करते हैं कि मिठाई वाला जो भी बने, ऐसी मिठाई न खानी पड़े जिससे मुंह मीठा हो या न हो शरीर का हाल बेहाल हो जाए। डाक्टर की मानें तो मिलावटी मिठाई खाने से लीवर तक खराब हो जाएगा। इसलिए धन की देवी लक्ष्मी से अनुरोध करते हैं कि जो भी मिठाई की दुकान खोलेगा उसे सद्बुद्धि तो दें ही, इससे पहले ऐसे भ्रष्ट व्यवस्था के लिए जिम्मेदार को कंगाल बनाकर हमें निजात दिला दे।

Thursday, November 8, 2012

अगर कही कमजोर पड़ गए तो नोच डालेंगे...



उत्तराखंड को बने हुए आज १२ साल पूरे हो गए. ६ सीएम् बन गए. दोनों दलो की सरकार भी बन गई.  क्या मिला उत्तराखंड को?  निराशा, हताशा, और बेवफाई.   नेता, अधिकारी, कुछ कर्मचारी, भू माफिया, शराब माफिया, दलाल, चापलूस, कथित पत्रकारों ने राज्य के हितो  को ठेंगे पर रखकर जमकर लूट लिया.  मूलभूत जरुरते आज भी पूरी नहीं हो सकी. पहाड़ तो अब पहले से वीरान हो गए.  विकास के नाम पर जो कुछ भी हुआ उसमे भी पूरी तरह भ्रस्ताचार की बू.  १३ जनपदों वाले छोटे से राज्य  की इस दुर्दशा के लिए आखिर कोन जिमेदार है. हम या आप. किसी भी सरकारी विभाग से होकर  अगर सचिवालय तक जाओ,  पसीने छूट जायेंगे.  अगर आपकी जेब में इतना धन नहीं है की जगह जगह बैठे  'भिकारियो' को दे सको तो समझो की  कोई काम नहीं होगा.  अगर  कही कमजोर पड़ गए तो नोच डालेंगे.  एसे लोगो के लिए गलत काम अब स्वीकार हो गया है. नियम कमजोर, शोसितो, पीडितो और वंचितों  के लिए रह जाते  है.  शर्मनाक हालात है.  मुझे तो सिर्फ इतना लगता है की इस घोर निराशा में उम्मीद की किरण अगर बची है तो सभी एक जैसे हो जाये, या फिर एक दूसरे को नोच दे, नक्सलवाद और मावोवाद के  नाम पर एसे लोगो को अपना शिकार बना दे जिन्होंने राज्य की एसी दुर्दशा करने का माहौल पैदा किया. अब हम भी इस भ्रस्ट व्यवस्था को नमन करते हुए आज के दिन की शुरुवात करते है.  जय उत्तराखंड जय भारत.