Thursday, July 3, 2014

साल भर बाद भी सरकार की वही खामोशी



भीषण हादसा, जिसे याद कर रूह तक कांप जाती है। सिहरन हो जाती है। मातम छा जाता है। घाव फिर से दर्द करने लगते हैं। पांवों तले जमीन खिसकने की कहावत आंखों के सामने फिर से हकीकत में तैरने लगती है। भयानक हादसा था, ऐसा कि एक साल बीत जाने के बाद भी इन जख्मों पर मरहम लगाने तक को राज्य सरकार को सुध तक नहीं आई। पिथौरागढ़ जनपद का वह सीमांत हिस्सा जो आपदा के रौद्र रूप से तहस-नहस हो गया था, वहां आज भी जनजीवन सामान्य नहीं हो सका है।
राज्य में मुख्यमंत्री तो बदले लेकिन पुनर्वास की व्यवस्था को हाथ आगे नहीं बढ़े। पीडि़तों के जख्मों पर मरहम-पट्टी भी ठीक से नहीं की जा सकी। इसके लिए भी प्रदेश की अस्थायी राजधानी से लेकर देश की राजधानी से घडिय़ाली आंसू बहाने वाले और हवाई दावे करने वाले हुक्मरानों को हकीकत का अंदाजा आज तक नहीं हो सका। मुनस्यारी व धारचूला ब्लाक के 600 से अधिक बेघर लोग अस्थायी व्यवस्था के तहत जैसे-तैसे दिन व्यतीत कर रहे हैं। आपदा के कुछ समय बाद तक यहां पर स्वास्थ्य निदेशक ने दौरा किया। सामाजिक संस्थाओं ने दवाइयां भेजीं, इन दवाइयों का वितरण भी ठीक से नहीं हो सका था। धारचूला क्षेत्र के 60 से अधिक प्रभावित आबादी को केवल नगर क्षेत्र में पांच डाक्टर हैं। अस्पताल में संसाधन के नाम पर व्यवस्था शून्य है। अगर किसी को जांच करानी है तो या दुर्गम रास्तों से जान जोखिम में डालते हुए जिला कार्यालय या फिर हल्द्वानी पहुंचना होता है। यहां पहुंचने तक मरीज की बीमारी कई गुना और बढ़ जाती है। यही हाल मुनस्यारी क्षेत्र का है। मुनस्यारी से सीमांत गांव तक 66 किलोमीटर के दायरे में सैकड़ों गांव में 40 हजार से अधिक की आबादी निवास करती है। केवल मुनस्यारी में चंद डाक्टरों की बदौलत पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था निर्भर है। स्वास्थ्य सेवा की जरुरत वैसे तो सभी को है लेकिन उन लोगों को और अधिक जरुरत पड़ जाती है, जो कुदरत के मार से त्रस्त हैं। एक साल बीत गया। बदहाल स्वास्थ्य सेवा को देखने वाला कोई नहीं है। यही हाल बागेश्वर व चंपावत जिले के आपदाग्रस्त क्षेत्र का है। यहां के लोग सरकारी व्यवस्था के नाम पर वोट देने तक सीमित रह गए हैं। स्वास्थ्य महानिदेशक डा. गौरीशंकर जोशी कहते हैं कि हम मानते हैं कि हमारे पास डाक्टरों की कमी है। हम पूरी तरह स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। आने वाले समय में तमाम कोशिश होगी कि इन्हें बेहतर उपचार की सुविधा मिल सके।

Sunday, April 20, 2014

खतरनाक है जाति, धर्म, संप्रदाय के वोट बैंक पर चर्चा



देश में सबसे अधिक खतरनाक है आरक्षण की व्यवस्था। इससे अधिक भयावह है धर्म, जाति, क्षेत्र, संप्रदाय, वर्ग पर आधारित वोट बैंक की चर्चा। इस पर पूरी तरह रोक लगा देनी चाहिए। देश की एकता, अखंडता के लिए यह खतरा है। विविधता में एकता की बात हम सिर्फ किताबों में ही न पढ़ें, भाषणों में ही न बोलें, बल्कि हकीकत में भी प्रयास करें। तभी देश का संपूर्ण विकास संभव हो सकेगा। इस तरह की चर्चा करने और तर्क बताने वालों पर चुनाव आयोग को पूरी तरह प्रतिबंध लगा देना चाहिए। अगर हम विश्व के सबसे बड़े संविधान में वर्णित समानता के अधिकार की बात करते हैं तो फिर हमारे सामने भारतीय क्यों नहीं नजर आते हैं? हम क्यों तर्क देते हैं कि यह हिंदू है, मुस्लिम है, सिख है, ईसाई है। ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, अनुसूचित जाति का है, जनजाति का है। अगर भारत के किसी एक प्रदेश में रहते हैं तो फिर चुनाव आते ही क्यों खेमे में बंट जाते हैं? जब हम साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं। एक ही अस्पताल में इलाज कराते हैं। एक ही स्रोत का पानी पीते हैं। एक ही कानून व्यवस्था के अधीन संचालित होते हैं। अलग-अलग धर्म ग्रंथ होकर भी हम एक दूसरे की भलाई का पाठ पढ़ते हैं। तब भी हम क्यों...?

Saturday, April 12, 2014

मुनाफे के लालच में पिस रहा देश का भविष्य


देश में करीब 40 करोड़ युवा वोटर है, जो तय करेगा कि देश का भविष्य क्या होगा? देश को किससे हाथों में सौंपा जाना है। इसके बावजूद स्थिति बेहतर नहीं है। नेता युवाओं को छलने में लगे हैं। उन्हें बरगलाने में लगे हैं। धोखा देने में लगे हैं। उनके हितों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। उनके भविष्य के साथ अन्याय कर रहे हैं। अगर हम केवल नैनीताल व ऊधमसिंह नगर (उत्तराखंड) लोकसभा के युवाओं की बात करें तो बेहद शर्मनाक और हैरान करने वाले तथ्य हमारे सामने हैं। इस क्षेत्र में रुद्रपुर में सिडकुल की कपंनियां हैं। इनमें हजारों युवाओं का शोषण रोजगार के नाम पर किया जा रहा है। उन्हें पंगु बना दिया जा रहा है। 10+2 उत्तीर्ण युवा हों या आईटीआई या पॉलीटेक्निक, कुछ दिन, महीने या साल उनसे काम लिया जाता है। इसके बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। जब जरुरत होती है, तो फिर ऐसे ही नए युवाओं को बुला लिया जाता है। यह युवा नौकरी के चलते आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। साथ ही सिडकुल की इन कंपनियों में चंद समय में शोषण का शिकार होने के बाद युवा सिर पकड़कर धरती के बोझ बन जाते हैं। इन युवाओं की ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार नेता 70 प्रतिशत स्थानीय स्तर के लोगों को आरक्षण दिए जाने की बात करते हैं। पर हकीकत में ऐसी कंपनियां अपने भारी मुनाफे के लिए देश के भविष्य को अंधकार में डाल रहे हैं।

Tuesday, March 11, 2014

नेताओं की धूर्तता, वोटर हैरत में



इस समय लोकसभा प्रत्याशी के टिकट को लेकर उत्तराखंड में जिस तरह की चतुराई, चालाकी, धूर्तता के साथ ही धन, यश, पहुंच व रसूख का ऐसा खेला खेला जा रहा है, जिसे सुनकर आम वोटर भी हैरत में पड़ जा रहा है। अभी कांग्रेस ने तो पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन भाजपा में यह ...नाच दिखने लगा है। यहां पर क्षेत्रीय दलों के बारे में चर्चा करना तो व्यर्थ है लेकिन आम आदमी पार्टी के बारे में लोग चर्चा तो कर रहे हैं, पर यह चर्चा फिलहाल हवा में है। जमीनी स्तर पर चंद नेताओं के कथित कारनामों से यह दल भी अन्य दलों की तरह कलंकित ही नजर आ रहा है। ऐसे में वोटरों के सामने बेहतर, योग्य, कर्मठ, जुझारू, दूरदर्शी नेता की पहचान करने की चुनौती है। अगर वोटर केवल हवाई नेताओं के बजाय जमीनी स्तर की समझ रखने वाले को चुने तो निश्चित तौर पर देश में विकास की उम्मीद जग सकती है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। काले धन को स्वदेश व विदेश में जमा करने वाले सफेद चेहरे बेनकाब हो सकेंगे। देश के आर्थिक हालात सुधर सकेंगे। विदेश नीतियों से संबंधित जटिल मामलों का समाधान हो सकेगा। अकर्मण्य हो चुकी प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार हो सकेगा। अब देखते हैं यह हमारी कल्पना में ही रह जाता है या फिर कुछ नया देखने को मिलता है।  

Saturday, March 1, 2014

विज्ञान के व्यवहारिकता की औपचारिकता


 


    विज्ञान केवल कक्षा तक पढ़ा जाने वाला विषय नहीं है। यह हमारे परिवेश में हैं। वातावरण में हैं लेकिन हम इसे समझना नहीं चाहते हैं। विडंबना यह है कि इस ज्ञान को व्यवहारिक तरीके से समझाया नहीं जाता है। विज्ञान के इस युग में आज भी अंधविश्वास व रुढि़वादिता कायम है। जबकि 28 फरवरी 1928 को महान वैज्ञानिक सीवी रमन ने रमन प्रभाव खोज की घोषणा की थी। इसी दिवस को वर्ष 1986 से भारत सरकार ने प्रतिवर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाने का निर्णय लिया था। इसका उद्देश्य विज्ञान से होने वाले उपलब्धियों के प्रति समाज में जागरूकता लाना है। वैज्ञानिक सोच पैदा कर प्रतिभावान बच्चों के अंदर छिपी प्रतिभा को उजागर करना है।
राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद व विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। सर सीवी रमन को इस खोज के लिए 1930 में नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का मूल उद्देश्य छात्र-छात्राओंको विज्ञान के लिए प्रेरित करना है। उनमें रुचि पैदा करनी है, जिससे कि वह भविष्य में विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर सकें। विजन 2020 के सपने को साकार कर सकें। औपचारिकता के लिए इस दिन कई जगह सेमिनार, गोष्ठियां, सम्मेलन आदि का आयोजन भी होगा। चंद शिक्षक व विद्यार्थी की इसमें उपस्थिति रहेगी। अंत में यह कार्यक्रम केवल कुछ लोगों के भाषणों तक सीमित रह जाएगा। अगर हकीकत में देखें तो उत्तराखंड में माध्यमिक से लेकर राजकीय महाविद्यालयों में विज्ञान विषय के पठन-पाठन की स्थिति तक बेहद दयनीय है। राज्य के 70 राजकीय महाविद्यालयों में भौतिक विज्ञान में 81 पद स्वीकृत हैं, इसमें 57 ही कार्यरत हैं। रसायन विज्ञान में 95 पदों में से 70 कार्यरत, जंतु विज्ञान में 82 पदों में से 58 और वनस्पति विज्ञान में 84 पदों में से 64 शिक्षक ही कार्यरत हैं। जितने पद रिक्त हैं, उसके कई गुना अधिक पदों की और जरुरत है।

Saturday, February 22, 2014

उत्तराखंड में 'आप' के तीन तरह के नेता


    उत्तराखंड में आप का नाटक देखने में मजा आ रहा है। अरविंद केजरीवाल जी जरा उत्तराखंड में आप भी अपनी पार्टी पर नजर दौड़ायें तो आपको भी अजब-गजब स्थिति देखने को मिलेगी। लोकसभा चुनाव होने को हैं। भाजपा व कांग्रेस के साथ ही आप भी तैयारी में जुटी है। ऐसे समय में उत्तराखंड में आप पार्टी में तीन तरह के नेता नजर आ रहे है। इसमें हर नेता अपने को सांसद से कम नहीं समझ रहा है। उसे टिकट मिलेगा या नहीं, स्थिति जो भी होगी लेकिन मैं आपको तीन तरह के नेताओं के बारे में बताना चाहता हूं। जिसे पढ़कर शायद आप भी चौंक जायेंगे।
 
1- इसमें ऐसे नेता है जो जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे हैं, उन्हें सिर्फ आम आदमी से मतलब है।
2- इसमें ऐसे नेता हैं, जो ओछे टाइप के हैं। जिन्हें कहीं जगह नहीं मिली वह आप में आ गए। उन्हें जमीनी स्तर पर आम आदमी से कोई लेना-देना नहीं है। विचारों से शून्य हैं। उन्हें तो सिर्फ आप के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी हैं। अपने नाम से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर देनी है।
3- इसमें ऐसे नेता है जो स्वयं को प्रकांड विद्वान समझते हैं। यह लोग पहाड़ के हितैषी हैं। पहाड़ के दर्द को बखूबी समझते हैं। पहाड़ के विकास को लेकर प्रतिबद्ध रहते हैं। आदि-आदि।

चाहें तो आप भी खूब टिप्पणी कर सकते हैं। इसे सहेजा जाएगा। इस पर और आगे लेख तैयार हो सकेंगे। एक और टिप्पणी करना चाहता हूं। जब उत्तराखंड में एक क्षेत्रीय दल था। जिसका बुरा हाल यहां के भ्रष्ट, कथित, घमंडी, पदलोलुप, चालाक, महत्वाकांक्षी नेताओं ने कर दिया। इसे हम आप सभी भलीभांति जानते हैं। ऐसे में तीसरे विकल्प के रूप में 'आप' का बेहतर अस्तित्व उत्तराखंड को मिल पाएगा। जल्द उम्मीद करना बेइमानी सा प्रतीत हो रहा है। जय हो...

Friday, February 14, 2014

आंदोलन किया बन गए नेता करोड़पति



नेता कैसे हैं, उन्हें समझना कठिन है। अगर हकीकत में देखेंगे तो आपको भी ऐसे नेताओं को देखकर शर्म आने लगेगी। आज हम सब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को देख रहे हैं। हर आम आदमी के हितों को ध्यान में रखते हुए खास आदमी के बारे में सोच रहे हैं। उनके खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं। सराहनीय है। देश हित में होगा। आम आदमी को उनका हक मिलेगा। भुखमरी, बेरोजगारी, महंगााई व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। अगर यही हाल रहा तो ठीक है अगर अन्य नेताओं की तरह किसी कंपनी या फिर नेता के खिलाफ आवाज उठाने के बाद उसे हाथ मिला लेते हैं। लेन-देन हो जाता है। सत्ता में आने पर अन्य गलत कार्यों को सही ठहराने की सहमति बन जाती है। कुछ दिन किसी के खिलाफ धरना देने के बाद फिर मुंह मोड लेते हैं। हमें लगता है कि यही हमारा नेता है। हकीकत में परदे के पीछे कुछ और हो चुका होता है। हमारे आसपास कोई भी नेता जब अचानक ऐसे आंदोलन के बाद लखपति व करोडपति हो जाता है। आपने सोचा नहीं, क्यों? सोचा तो फिर ऐसा नेता क्यों?

Sunday, February 2, 2014

उत्तराखंड आओ सीएम सीएम खेलें



नौ नवंबर 2000 को राज्य बना। उम्मीदें बहुत थी। राज्य के लिए मर मिटने वालों ने जो सपने संजोए थे, वह 13 साल में भी पूरे नहीं हो सके। सपने उनके पूरे हुए, जो ग्राम प्रधान तक नहीं बन सकते थे, आज सीएम सीएम खेल रहे हैं।




दृश्य एक...
उत्तराखंड देश का ऐसा राज्य बन गया है, जहां हर नेता को सीएम सीएम खेलने में मजा आ रहा है। उसे राज्य के मूलभूत विकास से कोई लेना-देना नहीं है। रोजगार की योजनाओं से मुंह मोड़ चुका है। गरीबी से उसे कोई मतलब नहीं। विकास योजनाएं उसे तब तक अच्छी लगती हैं, जब तक उसे कमीशन नहीं मिल जाता है। जब कमीशन मिला तो हो गया विकास। प्रकृति की सुरम्य वादियों में बसे छोटे से राज्य उत्तराखंड की खूबसूरती पर नेताओं की कुदृष्टि इसे पैदा होते समय ही पड़ गई थी। नौ नवंबर 2000 को राज्य बना। उम्मीदें बहुत थी। राज्य के लिए मर मिटने वालों ने जो सपने संजोए थे, वह 13 साल में भी पूरे नहीं हो सके। सपने उनके पूरे हुए, जो ग्राम प्रधान तक नहीं बन सकते थे, आज सीएम सीएम खेल रहे हैं। उनके लिए सीएम बनना तो महज ब्लाक प्रमुख बनने जैसा हो गया है। सीएम सीएम खेलते-खेलते नौ नवंबर 2000 से एक फरवरी 2014 तक आठवें सीएम हरीश रावत पद व गोपनीयता की शपथ ले चुके हैं। अब यह क्या करिश्मा दिखायेंगे, वक्त तय करेगा लेकिन यहां पर सीएम सीएम खेलने के दृश्य पर नजर डालेंगे तो आप भी आश्चर्य में पड़ जायेंगे।

दृश्य दो...
राज्य बना नेताओं की मौज आ गई। पहले मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी नित्यानंद स्वामी की हुई। यहीं से प्रदेश की राजनीति का स्तर घटिया होने लगा। जब नित्यानंद विराजमान थे तो दूसरे गुट के भगत सिंह कोश्यारी की हसरतें कुलाचें मारने लगी। अंतरिम सरकार के दिन पूरे होते उन्हें भी सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। वर्ष 2002 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। कांग्रेस के हाथ बाजी लग गई। कांग्रेस हाईकमान ने नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन फिर हरीश रावत को निराश होना पड़ गया। पांच साल निकल तो गए लेकिन दूसरे गुट की बेचैनी कम नहीं हुई। वर्ष 2007 में दूसरे विधानसभा चुनाव हुए। इसमें भाजपा ने बाजी मार ली। यहां फिर सीएम सीएम खेलने में विकास की तो हवा निकल गई लेकिन सांसद सेवानिवृत मेजर जनरल भुवन चन्द्र खंडूड़ी को कुर्सी सौंप दी गई। फिर क्या था? दूसरे गुट ने खंडूड़ी को विकास विरोधी बताना शुरू कर दिया। जैसे तैसे सीएम कड़क अंदाज में चल रहे थे तो फिर सीएम सीएम खेलने के दौरान डा. रमेश पोखरियाल निशंक सीएम बना दिए गए। कुछ समय बाद यह भी नहीं चल पाए तो, पांच साल के शासन में फिर बीसी खंडूड़ी को सीएम बना दिया। ईमानदारी की मिसाल पेश कर दी गई। 2012 में चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी भाजपा से केवल एक सीट आगे रही और सरकार बनाने में कामयाब हो गई। फिर कांग्रेस हाईकमान ने सांसद विजय बहुगुणा को सीएम बना दिया। दूसरे गुट ने प्रदेश में हल्ला मचा दिया, विकास तो ठप हुआ लेकिन सीएम सीएम खेल शुरू हो गया। सीएम बहुगुणा गए और केन्द्र सरकार में जल संसाधन मंत्री मंत्री हरीश रावत को कुर्सी सौंप दी।
अब तो जय हो.... उत्तराखंड का।

Tuesday, January 7, 2014

नेता जन-जन के पर जनसरोकारों से दूर



 कई स्वयंभू नेता बहुत बड़े हैं। इतने बड़े की वह अपने को राज्य स्तर का भी नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का समझने लगते हैं। वह प्रत्येक व्यक्ति को का नाम से पुकारते हैं।


    नेता बहुत हैं। हर दूसरे घर में, हर गली व मोहल्ले में। नेताओं की बाढ़ सी आ गई। कई स्वयंभू नेता बहुत बड़े हैं। इतने बड़े की वह अपने को राज्य स्तर का भी नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का समझने लगते हैं। वह प्रत्येक व्यक्ति को का नाम से पुकारते हैं। उस व्यक्ति को बहुत अच्छा लगता है, जब कोई बड़ा नेता उनका नाम पुकार लेता है। उनसे हाथ मिला लेता है। वह गरीब भी हो सकता है या पैसे वाला भी। ये नेता जन-जन के नेता कहलाए जाते हैं। इनके पिछलग्गू नेता भी इन्हें इतनी ऊंचाई पर पहुंचा देते हैं कि फिर इन्हें जमीन नहीं दिखती है। तमाम कथित पत्रकार भी उनसे वैसे ही सवाल करने लगते हैं, जो उन्हें अच्छे लगते हैं। कथित तौर पर जन-जन के यह वरिष्ठ व कर्मठ नेता वरिष्ठ पदों पर बैठे अधिकारियों से मित्रता गांठ लेते हैं। उनके मीठी-मीठी बातें कर लेते हैं। इसके बाद अगर कोई जुझारू पत्रकार उनसे जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों पर सवाल करते हैं तो वह बिफर जाते हैं। भड़क जाते हैं। आग-बबूला हो जाते हैं। यहां तक उस पत्रकार को उसकी हैसियत बताने से भी नहीं चूकते। उसे निम्न स्तर व निम्न सोच का पत्रकार घोषित करने लगते हैं। कई बार तो जनसरोकारों से जुड़े सवाल करने वाले पत्रकारों को हटाने तक की भी धमकी दे डालते हैं। लोकतंत्र में लोक के महत्व के विषयों की उपेक्षा करने वाले ऐसे कथित जन-जन के नेता ही देश को दीमक की तरह चाट रहे हैं।