Friday, April 22, 2011

पुस्तकों की दुनिया से विमुख होती युवा पीढ़ी



पुस्तकें ज्ञान का खजाना होती हैं, व्यक्ति की सच्ची दोस्त होती हैं। जीवन को परिवर्तित करने की क्षमता रखती हैं। बेहतर जीवन के साथ ही व्यक्तित्व विकास में सहायक होती हैं। ज्ञान, मनोरंजन व अनुभव से हमें दुनिया की सैर कराती हैं। विडंबना यह है कि वर्तमान में युवा पीढ़ी का रुझान पुस्तकों के अध्ययन के बजाय कहीं और ही हो गया है।
यूनेस्को ने 23 अप्रैल वर्ष 1995 में अध्ययन, प्रकाशन और कॉपीराइट को बढ़ावा देने के लिए वल्र्ड बुक एंड कॉपीराइट डे मनाने की शुरूआत की थी। इसके बाद वर्ष 2001 से भारत सरकार ने भी विश्व पुस्तक दिवस मनाना शुरू किया था। भारत में भी लोगों में पढऩे के लिए रुचि जगाने के लिए पुस्तक दिवस मनाना शुरू किया। लेकिन बाजारीकरण के इस दौर में खासकर युवा पीढ़ी में किताबों के प्रति रुचि अत्यंत कम हो गयी है। जिस तरह इंटरनेट, कार्टून, वीडियो गेम, टेलीविजन के प्रति युवा पीढ़ी का रुझान हद से ज्यादा बढ़ गया है, उससे तो बुद्धिजीवी वर्ग भी चिंतित होने लगा है। इसके लिए समाज में अध्ययन के प्रति रुचि बढ़ाने पर जोर दिया जाने लगा है। साहित्यकार अशोक पाण्डे का कहना है कि किताब पढऩा संस्कार है। पहले जिस तरह घर के बड़े सदस्य पुस्तकें पढऩे को प्रेरित करते थे, आज ऐसा नहीं दिख रहा है। देश में ही 200 से अधिक साहित्य की लघु पत्रिकाओं का निरंतर प्रकाशन हो रहा है। लोग इन पत्रिकाओं के बजाय बच्चों के लिए महंगे खिलौने खरीदना उचित समझते हैं। प्रसिद्ध भाषाविद् पद्मश्री प्रो.डीडी शर्मा का कहना है कि बच्चों में पढऩे के प्रति विशेष रुचि जगाने की आवश्यकता है। थॉट्स पुस्तक केन्द्र के पुस्तक विक्रेता भुवन भट्ट का कहना है कि युवा पीढ़ी में नाममात्र के ही बच्चे जासूसी, प्रेम पर आधारित उपन्यास खरीदने आते हैं। इससे लगता है कि निश्चित ही युवाओं में पढऩे का रुझान कम हुआ है। पुस्तक विक्रेता अरुण कुमार पाण्डे का कहना है कि कुछ ही बच्चे मोटिवेशन से संबंधित पुस्तकें खरीदते हैं। बाकी 30-35 वर्ष से अधिक उम्र के लोग ही साहित्यिक पुस्तकें खरीदते हैं।