Monday, July 3, 2017

वरिष्ठ फ़ोटो पत्रकार कमल दा नहीं रहे...

कमल दा यानी घुमक्कड़ पत्रकार व वरिष्ठ फ़ोटो पत्रकार कमल जोशी अब हमारे बीच नहीं रहे। तीन जुलाई को उन्होंने कोटद्वार में आत्महत्या कर ली। इस घटना से उत्तराखंड ही नही देश-विदेश में रहने वाले उनके शुभचिंतक शोक में हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़े एक प्रभावशाली शख्शियत का ऐसे जान देना। यह सुन, हर कोई अवाक है।
तीन साल पहले की बात है। दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में मेरी उनसे मुलाकात हुई। वरिष्ठ लेखक श्री देवेंद्र मेवाड़ी जी ने परिचय करवाया। इसके बाद उन्होंने वरिष्ठ कथाकार पंकज बिष्ट जी और वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी जी के साथ पुस्तक के एक स्टाल पर कई तस्वीरें खींची। उनका फ़ोटो खींचने का आनंद बेहद अनूठा। तब से मेरा उनसे लगाव सा हो गया। उनको फेसबुक में देखता। उनको पढ़ता। उनकी दुर्लभ तस्वीरों को निहारता। इसके बाद कर बार मुलाकात हुई। हालचाल पूछते। उनसे बात करने में बहुत अच्छा लगता। उनके अंदर पहाड़ का दर्द उमड़ता-घुमड़ता था। चिंतन करते थे। हमेशा विद्वानों के साथ सहज रहते। गंभीर विषयों पर गहन चर्चा करते। अक्सर उनके शुभचिंतक उनसे बात करने को उत्सुक रहते। ऐसे व्यक्तित्व का भी अचानक हतप्रभ कर देने वाला कदम उठाना। हर किसी को अंदर तक हिला गया।
मनोविज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते भी मैंने पढ़ा है और इस तरह की तमाम खबरों को लिखते समय भी एक बात महसूस की है। अगर कोई ऐसे विदा होता है तो वह पहले किसी न किसी व्यक्ति को इस बात की चर्चा अवश्य कर देता है।
शायद उन्होंने भी की हो...! पता नहीं...किससे?
आज इस घटना से मन दुखी सा है। प्रभु कमल दा की आत्मा को शान्ति प्रदान करे।
गणेश जोशी

Monday, February 20, 2017

देहरादून से वोट देने गांव पहुंचा रामगढ़ का सूरज


यह सपना केवल सूरज का नहीं, उत्तराखंड के विषम भौगोलिक स्थिति वाले हर पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं की है। जो न चाहते हुए भी, मजबूरी में शिक्षा के लिए पलायन कर रहे हैं।


रामगढ़ ऐसी जगह, जो पर्यटन के लिए बेहद खूबसूरत। प्रसिद्ध सेब के बागान और रमणीक स्थल। मूलभूत सुविधाओं को लेकर फिर भी उपेक्षित। विधानसभा चुनाव-2017 के लिए मतदान की तिथि यानी 15 फरवरी। इस चुनाव से एक बार फिर युवाओं में बेहतरी की उम्मीद जगी। यही उम्मीद लेकर देहरादून से रामगढ़ पहुंचा सूरज सिंह नयाल।
 शीतला छतोला गांव निवासी सूरज की तमन्ना है, उसके क्षेत्र में अच्छे स्कूल-कॉलेज खुलें। इसी आस लिए वह हल्द्वानी से पांच वाहनों से लिफ्ट लेकर रामगढ़ के शीतला मतदान बूथ पर पहुंचा और अपने पसंदीदा प्रत्याशी को वोट दिया। यह सपना केवल सूरज का नहीं, उत्तराखंड के विषम भौगोलिक स्थिति वाले हर पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं की है। जो न चाहते हुए भी, मजबूरी में शिक्षा के लिए पलायन कर रहे हैं। गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएससी कर चुके सूरज ने 10वीं तक की पढ़ाई मुक्तेश्वर के हाइस्कूल से की। वह तब की स्थिति बताते हैं, नौ किलोमीटर दूर पैदल स्कूल जाते थे। कक्षा में खाली बैठे रहते थे, लेकिन शिक्षक पढ़ाने नहीं आते थे। मुझे दुख होता है, इतने समय में बहुत कुछ नहीं सीख पाया, जो सीखना चाहिए था। माता-पिता, बहन सभी गांव में रहते हैं। मैं भी यही पढऩा चाहता हूं, लेकिन मजबूर होकर घर से निकल गया। 12वीं तक हल्द्वानी में पढ़ा और फिर देहरादून। मेरे तमाम साथी हैं, जो वोट देने आ रहे हैं। सूरज ने तमाम युवाओं को वोट के लिए प्रेरित किया।

Thursday, February 2, 2017

क्या हाल, बंद अस्पताल

मेरा सीधा सवाल...
उत्तराखंड बने 16 साल हो गए। पांच साल सत्ता में रहते हुए सीएम -सीएम खेलने वाली भाजपा ने अस्पतालों में मनमाने तरीके से तमाम उपकरण खरीद लिए। डॉक्टरों को पहाड़ के अस्पतालों में नहीं भेजा जा सका। ट्रांसफर में मनमानी से कई अच्छे डॉक्टरों ने इस्तीफा दे दिया।
कांग्रेस की इस सरकार में स्वास्थ्य विभाग जितना अधिक गर्त में गया। शायद सोच भी नहीं सकते। कैसे डॉक्टरों के ट्रांसफर में खेल चला। एनएचएम योजना का हश्र यह है कि सूचना के अधिकार के तहत भी योजना के क्रियान्वयन की भी जानकारी नहीं दी जा रही है। अस्पतालों में निर्माण कार्य के नाम पर नैनीताल जिले के एक ठेकेदार को मनमाने तरीके ठेका दे दिया गया। सीडीओ की जाँच में गबड़झाला उजागर हो गया लेकिन इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी, ठेकेदार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। आखिर ऐसा क्यों...?
इसके पीछे जनहित मंशा रही होगी या फिर कुछ और...यह आप भली-भांति समझ सकते हैं।