Sunday, November 27, 2011

फिर ऐसी हिंसा क्यों?


गणेश जोशी
 
शेविंग करने बारबर की दुकान पर गया था। दो नवयुवक शेविंग कराते-कराते आपस में बात कर 
रहे थे। हिन्दू, मुस्लिम दंगा क्यों हो गया होगा? बिना कारण एक-दूसरे को मारने-काटने दौड़ 
रहे हैं। जबकि घटना के पीछे कारण देखें तो कुछ भी नहीं नजर आता है। बताते हैं कि कुरान 
शरीफ का पन्ना किसी के घर के सामने फेंका गया था। अगर वास्तव में फेंका भी गया था तो 
क्या हो गया? आपस में बातचीत कर लेते। आपसी प्रेम भाव से समाधान निकाल लेते। इतनी बड़ी 
हिंसा करने की जरुरत क्यों हो गयी? दूसरा कहता है, मारपीट करने वाले ऐसे लोग लोग थे, 
जो बिल्कुल आवारा जैसे लग रहे थे। कोई लुंगी पहना था तो कई फटी पेंट में था। कम 
पढ़ा-लिखा बारबर भी रुचि से उनकी बातें सुनता है और बातों शामिल हो जाता है। कहता है, 
भाई दंगा करके तो कुछ हासिल हो नहीं सकता है। फिर लोग ऐसा क्यों करते होंगे, कुछ समझ में 
नहीं आता। बात बिल्कुल ठीक है, जिनके पास कोई काम-धाम नहीं होता है, वे ही ऐसा करते 
हैं। इस बीच मैं शेविंग के लिए इंतजार करते हुए समाचार पत्र पढ़ रहा था। साथ ही उनकी 
बातों को भी ध्यान से सुन रहा था।
मेरी भी समझ में उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में स्थित औद्योगिक नगरी रुद्रपुर में हुए दंगे का 
अचानक सांप्रदायिक रूप धारण कर लेना गले से नहीं उतर रहा था। प्रशासन ने तो पूरी तरह 
सांप्रदायिक दंगा घोषित कर दिया। इस दंगे के पीछे सांप्रदायिक होने के भी कई रहस्य नजर 
आने लगे हैं। एक सामान्य कागज का टुकड़ा कहीं गिरा है। या फिर पाक कुरान शरीफ का पन्ना 
किसी ने जानबूझकर फेंका या फिर किसी की गलती की वजह से गिर गया था। सबसे पहले किसने 
उसे पन्ने को देखा। फिर तुरंत पत्थर, हथियार व सुतली बम कहां से आ गये? फिर कौन लोग 
किसे मारने-पीटने दौड़ पड़े। पाक कुरान शरीफ तो हिंसा की बात नहीं करता है। फिर 
अकारण, बेवजह निरीह लोगों की जान खतरे में क्यों आ गयी? न ही हिन्दुओं के किसी ग्रंथ में 
हिंसा का जिक्र है और न ही गुरु ग्रंथ साहिब की ऐसी ही कोई शिक्षा है। कौमी एकता के 
साथ अमन की दुआयें करने वाला कौम की शिक्षा भी हिंसापरक कैसे हो सकती हैं?
अगर एक संप्रदाय प्रशासन व पुलिस के प्रति आक्रोश व्यक्त रहा था तो फिर अचानक दूसरे व 
तीसरे संप्रदाय के लोग वहां कैसे पहुंच जाते हैं? अब हवा में कई तरह के अनुत्तरित प्रश्न तैरने के 
छोड़ दिये गये हैं, शायद ही इनका जवाब उतनी बारीकी से खोजा जाएगा। जितनी की 
आवश्यकता है।
जिस औद्योगिक नगरी में भारत के कोने-कोने से अलग-अलग जाति, धर्म, संप्रदाय के लोग आपस 
में नौकरी करते हैं। आपस में हंसते-मुस्कुराते हैं। खेलते हैं। साथ भोजन करते हैं। साथ घूमने जाते हैं। 
इसके बाद भी इस नगरी में सांप्रदायिक हिंसा की मनगढं़त कहानी किसी के गले नहीं उतर पा 
रही है। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव निकट हैं। इसके पीछे राजनीति चालबाजियों से भी 
इंकार नहीं किया जा सकता है, भले ही अब राजनीति दलों के नेता किसी भी तरह से 
अपने-अपने तर्क ही क्यों न दे रहे हों। इन तर्कों के बीच सांप्रदायिक हिंसा का सुनियोजित 
होने से भी स्पष्ट तौर पर इंकार नहीं किया जा रहा है। इसके बाद ऐसे अवसरवादी नेताओं व 
हिंसा फैलाने वाले समाज के अराजक तत्वों को आम आदमी की जान लेने से क्या हासिल होगा? 
जान चाहे मुस्लिम की हो हिन्दू की। आखिर वो इंसान ही तो है। संप्रदाय विशेष में नफरत 
फैलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकना कहां का न्याय है? यह कैसी समझ है?
जबकि आम जीवन में बचपन से लेकर नौकरी और त्योहारों तक में नफरत कहीं नजर नहीं आती है। 
मुस्लिम संप्रदाय लोग बारबर हो या बढ़ई का कार्य करते हों, अधिकांश हिन्दुओं के इलाके में 
बेपरवाह होकर कार्य करते हैं। यहां तक कि प्रतिवर्ष रामलीला के मंचन से लेकर रावण का 
पुतला बनाने तक में हिन्दुओं के साथ मुस्लिम भाई भी कौमी एकता का संदेश देते हुए दिख जाते 
हैं। कई त्योहारों में एक दूसरे के घर जाकर शुभकामनाएं दी जाती हैं। इस स्थिति के बाद मुझे 
नहीं लगता है कि कोई शिक्षित हिन्दू हो या मुस्लिम या फिर किसी अन्य संप्रदाय का ही 
क्यों न हो। इस तरह की हिंसा फैलाने के बारे में भी सोचता होगा। फिर ऐसा क्यों...?
अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती दो अक्टूबर को घटित इस शर्मनाक 
घटना पर उनका भजन जो सभी संप्रदायों को एकसूत्र में बांधने का संदेश देता है-
रघुपति राघव राजा राम,
पतित पावन सीता राम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,
सबको सनमति दे भगवान।

Saturday, November 26, 2011

मीडिया में नकारात्मकता से परहेज करती हैं प्रतिभा आडवाणी


मीडिया

भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की बेटी प्रतिभा आडवाणी ने कहा कि मीडिया में नकारात्मक चीजों को ज्यादा नहीं प्रकाशित व प्रसारित करना चाहिये। इससे समाज में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। केवल टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी को नकारात्मक रूप से पेश कर देना कतई उचित नहीं है।
जन चेतना यात्रा के साथ चल रही प्रतिभा आडवाणी 38वें दिन 18 व 19 नवंबर को हल्द्वानी (नैनीताल) में थी। इस दौरान प्रतिभा ने कहा कि न्यूज चैनल 24 घंटे से जब नकारात्मक चीजों को दिखाते हैं तो आम आदमी पर इसका गलत असर जाता है। वैसे समझ में नहीं आता है कि कौन सी मानसिकता के तहत इस तरह के समाचार व कॉमेडी शो दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि समाचार सकारात्मक होने चाहिये। सोच सकारात्मक होनी चाहिये। जब उनके पूछा गया कि आप किसे नकारात्मक कहती हैं, तो इसका जवाब देने के लिए फिर समय नहीं था। क्योंकि जन चेतना यात्रा का रथ चलने को तैयार हो रहा था।