Tuesday, January 25, 2011

उत्तराखंड का लोक जीवन एवं लोक संस्कृति


पुस्तक समीक्षा

         अत्यंत खूबसूरत पहाड़ की पथरीली भूमि का संघर्ष पूर्ण जीवन भले ही अभावों से ग्रस्त था, लेकिन चिंता, तनाव, प्रतिस्पर्धा, भौतिक सुख-सुविधाओं की चकाचौंध से रहित था। कृषि व पशुपालन ही जीवन का आधार था। लोक जीवन के समस्त वैयक्तिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रियाकलाप भी इन्हीं पर आधारित थे। विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले भू-क्षेत्र उत्तराखंड के लोक जीवन का इतिहास 19 वीं शताब्दी से पहले के इतिहास से महरूम रहा है, लेकिन उत्तराखंड का लोकजीवन अब भी अभावों व सुविधाओं में घिस रहा है। इस लोकजीवन व लोकसंस्कृति का विस्तार से वर्णन किया है भाषाविद व संस्कृत के विद्वान प्रो.डीडी शर्मा ने। उत्तराखंड का 'लोक जीवन एवं लोक संस्कृतिÓ नाम से प्रकाशित पुस्तक के प्रथम खंड में आठ अध्याय है। प्रथम अध्याय में उन्होंने उत्तराखंड लोक जीवन की पृष्ठभूमि का वर्णन किया है। दूसरे अध्याय में यहां के लोगों की आवास व्यवस्था किस तरह रही और गांवों के विकसित होने की प्रक्रिया को दर्शाया है। अध्याय तीन में प्रो. शर्मा ने आजीविका के स्रोतों का जिक्र किया है। पहाड़ का लोक जीवन अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किस तरह का था और चिंता मुक्त होकर अपने लिए आवश्यकतानुसार समस्त संसाधन भी जुटा लेता था।
चौथे अध्याय में कृषकीय लोक जीवन और इससे जुड़ी परंपराओं अनुष्ठानों का भी उल्लेख किया गया है। पांचवे अध्याय में पशुपालकीय एवं पशुचारकीय जीवन का वृतांत है। छठे अध्याय में कृषक-पशुचारक वर्गीय नारी का लोकजीवन और पर्वतीय नारी की बेहद कठिन जिंदगी का सार है। सातवें अध्याय में लोक वेषभूषा है तो आठवे अध्याय में नारी के आभूषणों का वर्णन है। नौवे अध्याय में लोकजीवन के भोज्यव्यंजन एवं पेय पदार्थ व 10 वें अध्याय में रीतिरिवाजों को दर्शाया गया है।
दूसरे खंड के आठ अध्यायों में भी लोक सांस्कृति की विस्तृत वर्णन किया गया है। इसके साथ ही लोक संस्कृति का धार्मिक व सामाजिक महत्व भी समझाया गया है। इसके साथ ही लोक विश्वास आस्थाएं, अंधविश्वास की जानकारी भी दी गयी है। लेखक ने कुछ ऐसे कठिन शब्दों का इस्तेमाल किया है कि आम पाठक को समझाने में थोडा माथापच्ची करनी पड़ सकती है। फिर भी उत्तराखंड के विस्तृत लोकजीवन को समझाने के लिए भाषा का उपयोग सहज व सरल तरीके से किया गया है। इससे लगता है कि पुस्तक उनके लिए भी अनूठी साबित होगी जो पहाड़ की जिंदगी से लेकर देश-विदेश में पुन: मेहनत व लगन से नया आशियाना तलाश चुके है।
लेखक- प्रो. डीडी शर्मा
अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी पुष्ठ- 406
कीमत 700 रूपये निर्धारित है।

शोध को समर्पित व्यक्तित्व प्रो. डीडी शर्मा को पद्श्री अवार्ड


उत्तराखंड पर लिखे हैं 30 से अधिक शोध ग्रंथ
 भाषा के मर्मज्ञ और शोध गं्रथों के लिए विख्यात प्रो. डीडी शर्मा को उनके मेहनत व समर्पण का फल देर से ही सही, लेकिन मिला। पहाड़ों व हिमालयों के जीवन और उसके इतिहास खोजने में जुटे रहने वाले विद्वान प्रो. शर्मा ने अब तक 57 शोध ग्रंथों के प्रकाशन कर देश में अपनी अलग पहचान कायम की।
भीमताल में 24 अक्टूबर 1923 को जन्मे प्रो. शर्मा वर्तमान में आनंद धाम नवाबी रोड में रहते हैं। उन्होंने आगरा से एमए किया। एसएस विश्वविद्यालय वाराणसी से साहित्याचार्य किया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से पीएचडी के अलावा डीलिट् की उपाधि भी उन्हें प्राप्त हुई। उन्होंने अध्ययन व शोध करते हुए संस्कृत के अलावा पाली, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, पारसियन, नेपाली, पंजाबी, डोगरी, उर्दू आदि भाषाओं का ज्ञान हासिल किया। उत्तराखंड से संबंधित 28 शोध ग्रंथ का हिन्दी भाषा में प्रकाशन करने का अनूठा कार्य किया है। इसके अलावा उत्तराखंड ज्ञानकोष नाम से ऐसा ग्रंथ तैयार कर रहे हैं, जिसमें राज्य की संपूर्ण जानकारी समाहित है। इसके अलावा उन्होंने 56 अनुसंधान ग्रंथों एवं 200 से अधिक अनुसंधान पत्रों का प्रकाशन किया है। इसके लिए उन्हें जवाहर लाल नेहरू फेलोशिप, यूजीसी अमरेटस फेलोशिप, इंदिरा गांधी मेमोरियल फेलोशिप भी प्राप्त हुई है। इसी महीने उन्हें जीवन भर के उत्कृष्ट कार्य के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल फाउंडेशन दिल्ली की ओर से 2010 के इंटरनेशनल अवार्ड भी प्राप्त हुआ है। प्रो. शर्मा उत्तराखंड के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें यह पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव हासिल हुआ।
पंजाब विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष पद से 1989 में सेवानिवृत प्रोफेसर हिमालयी क्षेत्रों में पश्चिम से लद्दाख, लाहौर, स्पिति, किन्नौर आदि क्षेत्रों से लेकर पूर्व में नेपाल, सिक्किम व भूटान तक के क्षेत्रों की दर्जनों तिब्बत-बर्मी परिवार की भाषाओं व संस्कृतियों का सर्वेक्षण एवं अध्ययन किया है। प्रो. शर्मा राष्ट्रपति पुरस्कार से लेकर तमाम राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं। पद्श्रमी के लिए चुने गये प्रो. शर्मा ने बताया कि नि:स्वार्थ भाव से किये गये कार्य का परिणाम हमेशा सकारात्मक होता है। इसलिए हर व्यक्ति को बिना किसी फल की इच्छा के अपने कार्य में लगे रहना चाहिये।
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उत्तराखंड पर हिन्दी माध्यम से लिखित कुछ ग्रंथ :-
1- कुमाऊंनी में आर्येतरांश, उत्तराखंड विकास निधि, अल्मोड़ा।
2- हिमालयी संस्कृति के मूलाधार, इरा प्रकाशन, सोलन।
उत्तराखंड का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास- पांच खंड
3- परिचयखंड, उत्तरायण प्रकाशन, हल्द्वानी।
4- समीक्षा खंड, उत्तरायण प्रकाशन, हल्द्वानी।
5- संप्रदाय खंड, उत्तरायण प्रकाशन, हल्द्वानी।
6- समाजव्यवस्था खंड, उत्तरायण प्रकाशन, हल्द्वानी।
7- जातिव्यवस्था खंड, उत्तरायण प्रकाशन, हल्द्वानी।
8- हिमालय के खश, पहाड़ प्रकाशन, नैनीताल।
9- उत्तराखंड के लोक देवता, अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी
10- उत्तराखंड के लोकोत्सव एवं पर्वोत्सव, अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी।
11- उत्तराखंड का लोक जीवन, अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी।
12- उत्तराखंड की लोकसंस्कृति, अंकित प्रकाशन, हल्द्वानी।