Sunday, October 9, 2011

कोई पार नदी के गाता



भंग निशा की नीरवता कर
इस देहाती गाने का स्‍वर
ककड़ी के खेतों से उठकर,
आता जमुना पर लहराता
कोई पार नदी के गाता।

होंगे भाई-बंधु निकट ही
कभी सोचते होंगे यह भी
इस तट पर भी बैठा कोई, 
उसकी तानों से सुख पाता
कोई पार नदी के गाता।

आज न जाने क्‍यों‍ होता मन
सुनकर यह एकाकी गायन
सदा इसे मैं सुनता रहता, 
सदा इसे मैं गाता जाता
कोई पार नदी के गाता। 

-  हरिवंश राय बच्‍चन 

Monday, October 3, 2011

...ऐसे नेताओं को भगाओ

    जो नेता आपकी मांगों पर ध्यान नहीं देते हैं। आपकी समस्याओं से मुंह मोड़ते हैं। मूलभूत समस्याओं 
के निराकरण को लेकर ही सजग नहीं है। भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। अराजकता को बढ़ावा 
देते हैं। ऐसे नेताओं को वोट मांगते समय जमकर फटकार लगाओ। जूते की माला पहनाओ। काले झंडे 
दिखाओ। उनके घोषणापत्र में लिखी गयी झूठी घोषणाओं को चिल्ला-चिल्लाकर सभी को बताओ। 
अच्छे के लिए अच्छा और बुरे को बुरा कहो। सबसे बड़ा हथियार आपके हाथ में है। गुप्त मतदान 
होता है। इसमें तो आपको डरने की आवश्यकता नहीं है। आप वोट दें। ऐसे नेताओं को वोट दो, 
जो स्वच्छ छवि का हो। उसका घोषणापत्र आपके अनुकूल हो। इस बार तो आप गलती न करें।
आपका घोषणा पत्र
तहसील में घूसखोरी बंद की जाय।
आरटीओ, पासपोर्ट आदि कार्यालयों में दलाली व घूसघोरी बंद हो।
कार्यालयों में फाइल आगे बढ़ाने के लिए घूस न देनी पड़े।
घर व प्रतिष्ठान बनाने के लिए नक्शा पास कराने में घूस न देनी पड़े।
सड़क बनाने में कमीशनखोरी बंद हो।
पेयजल लाइन बिछाने के लिए कमीशन खोरी न हो।
पुलिस में रिपोर्ट लिखाने के लिए पैसा न देना पड़े।
स्कूल में एडमिशन के लिए डोनेशन के नाम पर वसूली बंद हो।
सदन में प्रश्न करने के लिए पैसे न देने पड़े।

Sunday, October 2, 2011

कहीं पे धूप की चादर



कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए।

जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखा
बहुत से लोग वहीं छटपटा के बैठ गए।

खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने को
सब अपनी अपनी हथेली जला के बैठ गए।

दुकानदार तो मेले में लुट गए यारों
तमाशबीन दुकानें लगा के बैठ गए।

लहू लुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो
शरीफ लोग उठे दूर जा के बैठ गए।

ये सोच कर कि दरख्तों में छांव होती है
यहां बबूल के साये में आके बैठ गए।

-दुष्यन्त कुमार