उत्तराखंड को बने हुए आज १२ साल पूरे हो गए. ६ सीएम् बन गए. दोनों दलो की सरकार भी बन गई. क्या मिला उत्तराखंड को? निराशा, हताशा, और बेवफाई. नेता, अधिकारी, कुछ कर्मचारी, भू माफिया, शराब माफिया, दलाल, चापलूस, कथित पत्रकारों ने राज्य के हितो को ठेंगे पर रखकर जमकर लूट लिया. मूलभूत जरुरते आज भी पूरी नहीं हो सकी. पहाड़ तो अब पहले से वीरान हो गए. विकास के नाम पर जो कुछ भी हुआ उसमे भी पूरी तरह भ्रस्ताचार की बू. १३ जनपदों वाले छोटे से राज्य की इस दुर्दशा के लिए आखिर कोन जिमेदार है. हम या आप. किसी भी सरकारी विभाग से होकर अगर सचिवालय तक जाओ, पसीने छूट जायेंगे. अगर आपकी जेब में इतना धन नहीं है की जगह जगह बैठे 'भिकारियो' को दे सको तो समझो की कोई काम नहीं होगा. अगर कही कमजोर पड़ गए तो नोच डालेंगे. एसे लोगो के लिए गलत काम अब स्वीकार हो गया है. नियम कमजोर, शोसितो, पीडितो और वंचितों के लिए रह जाते है. शर्मनाक हालात है. मुझे तो सिर्फ इतना लगता है की इस घोर निराशा में उम्मीद की किरण अगर बची है तो सभी एक जैसे हो जाये, या फिर एक दूसरे को नोच दे, नक्सलवाद और मावोवाद के नाम पर एसे लोगो को अपना शिकार बना दे जिन्होंने राज्य की एसी दुर्दशा करने का माहौल पैदा किया. अब हम भी इस भ्रस्ट व्यवस्था को नमन करते हुए आज के दिन की शुरुवात करते है. जय उत्तराखंड जय भारत.
Thursday, November 8, 2012
अगर कही कमजोर पड़ गए तो नोच डालेंगे...
उत्तराखंड को बने हुए आज १२ साल पूरे हो गए. ६ सीएम् बन गए. दोनों दलो की सरकार भी बन गई. क्या मिला उत्तराखंड को? निराशा, हताशा, और बेवफाई. नेता, अधिकारी, कुछ कर्मचारी, भू माफिया, शराब माफिया, दलाल, चापलूस, कथित पत्रकारों ने राज्य के हितो को ठेंगे पर रखकर जमकर लूट लिया. मूलभूत जरुरते आज भी पूरी नहीं हो सकी. पहाड़ तो अब पहले से वीरान हो गए. विकास के नाम पर जो कुछ भी हुआ उसमे भी पूरी तरह भ्रस्ताचार की बू. १३ जनपदों वाले छोटे से राज्य की इस दुर्दशा के लिए आखिर कोन जिमेदार है. हम या आप. किसी भी सरकारी विभाग से होकर अगर सचिवालय तक जाओ, पसीने छूट जायेंगे. अगर आपकी जेब में इतना धन नहीं है की जगह जगह बैठे 'भिकारियो' को दे सको तो समझो की कोई काम नहीं होगा. अगर कही कमजोर पड़ गए तो नोच डालेंगे. एसे लोगो के लिए गलत काम अब स्वीकार हो गया है. नियम कमजोर, शोसितो, पीडितो और वंचितों के लिए रह जाते है. शर्मनाक हालात है. मुझे तो सिर्फ इतना लगता है की इस घोर निराशा में उम्मीद की किरण अगर बची है तो सभी एक जैसे हो जाये, या फिर एक दूसरे को नोच दे, नक्सलवाद और मावोवाद के नाम पर एसे लोगो को अपना शिकार बना दे जिन्होंने राज्य की एसी दुर्दशा करने का माहौल पैदा किया. अब हम भी इस भ्रस्ट व्यवस्था को नमन करते हुए आज के दिन की शुरुवात करते है. जय उत्तराखंड जय भारत.
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