भीषण हादसा, जिसे याद कर रूह तक कांप जाती है। सिहरन हो जाती है। मातम छा जाता है। घाव फिर से दर्द करने लगते हैं। पांवों तले जमीन खिसकने की कहावत आंखों के सामने फिर से हकीकत में तैरने लगती है। भयानक हादसा था, ऐसा कि एक साल बीत जाने के बाद भी इन जख्मों पर मरहम लगाने तक को राज्य सरकार को सुध तक नहीं आई। पिथौरागढ़ जनपद का वह सीमांत हिस्सा जो आपदा के रौद्र रूप से तहस-नहस हो गया था, वहां आज भी जनजीवन सामान्य नहीं हो सका है।
राज्य में मुख्यमंत्री तो बदले लेकिन पुनर्वास की व्यवस्था को हाथ आगे नहीं बढ़े। पीडि़तों के जख्मों पर मरहम-पट्टी भी ठीक से नहीं की जा सकी। इसके लिए भी प्रदेश की अस्थायी राजधानी से लेकर देश की राजधानी से घडिय़ाली आंसू बहाने वाले और हवाई दावे करने वाले हुक्मरानों को हकीकत का अंदाजा आज तक नहीं हो सका। मुनस्यारी व धारचूला ब्लाक के 600 से अधिक बेघर लोग अस्थायी व्यवस्था के तहत जैसे-तैसे दिन व्यतीत कर रहे हैं। आपदा के कुछ समय बाद तक यहां पर स्वास्थ्य निदेशक ने दौरा किया। सामाजिक संस्थाओं ने दवाइयां भेजीं, इन दवाइयों का वितरण भी ठीक से नहीं हो सका था। धारचूला क्षेत्र के 60 से अधिक प्रभावित आबादी को केवल नगर क्षेत्र में पांच डाक्टर हैं। अस्पताल में संसाधन के नाम पर व्यवस्था शून्य है। अगर किसी को जांच करानी है तो या दुर्गम रास्तों से जान जोखिम में डालते हुए जिला कार्यालय या फिर हल्द्वानी पहुंचना होता है। यहां पहुंचने तक मरीज की बीमारी कई गुना और बढ़ जाती है। यही हाल मुनस्यारी क्षेत्र का है। मुनस्यारी से सीमांत गांव तक 66 किलोमीटर के दायरे में सैकड़ों गांव में 40 हजार से अधिक की आबादी निवास करती है। केवल मुनस्यारी में चंद डाक्टरों की बदौलत पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था निर्भर है। स्वास्थ्य सेवा की जरुरत वैसे तो सभी को है लेकिन उन लोगों को और अधिक जरुरत पड़ जाती है, जो कुदरत के मार से त्रस्त हैं। एक साल बीत गया। बदहाल स्वास्थ्य सेवा को देखने वाला कोई नहीं है। यही हाल बागेश्वर व चंपावत जिले के आपदाग्रस्त क्षेत्र का है। यहां के लोग सरकारी व्यवस्था के नाम पर वोट देने तक सीमित रह गए हैं। स्वास्थ्य महानिदेशक डा. गौरीशंकर जोशी कहते हैं कि हम मानते हैं कि हमारे पास डाक्टरों की कमी है। हम पूरी तरह स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। आने वाले समय में तमाम कोशिश होगी कि इन्हें बेहतर उपचार की सुविधा मिल सके।
आपदा प्रबंधन और आपदा के बाद, आम जान की सहायता को लेकर जो हालात हैं वे दुखद हैं | जाने कब इनमे सुधर होगा ...विचार पोस्ट
ReplyDelete