Thursday, December 30, 2010

गंदगी हमें शर्मशार नहीं करती...




प्रो. आरसी पंत
यह सुखद संयोग ही है कि आज भारत में हर दूसरा व्यक्ति 25 साल से कम उम्र वाला है। सुभद्रा कुमारी चौहान के शब्दों में कहें तो :
बूढ़े भारत में आई है (थी)
फिर से नई जवानी है (थी)
युवाओं के अपने सपने हैं और अपनी प्रतिबद्धताएं हैं, लेकिन कोई भी युवक या युवती मार्गदर्शक एवं संरक्षक की आवश्यकता से इन्कार नहीं कर सकता।
दैनिक जागरण द्वारा आयोजित गोष्ठी (समाज में युवाओं की भूमिका) विषय की व्यापकता एवं उपलब्ध समय को दृष्टिगत करते हुए मैं संक्षेप में कुछ समस्याओं की चर्चा करना चाहता हूँ और यह अपेक्षा करता हूँ कि युवावर्ग अवश्य ही इन पर विचार करेगा।
1. भारतीय समाज में सामाजिक चेतना की कमी :-
भारतीय संस्कृति में पाश्चात्य संस्कृति के सापेक्ष सामाजिक चेतना की कमी, अभाव न भी कहें, प्रचुर मात्रा में विद्यमान है। समाज के व्यापक हित में समाज की इकाई, प्रत्येक व्यक्ति एवं परिवार को अपने स्वार्थ की बलि देना नहीं होगा। यदि राष्ट्र को प्रगति करनी है तो प्रत्येक नागरिक को अपने परिवार के साथ ही लगाव व राष्ट्रहित के बीच में सामंजस्य बिठाना ही होगा। अपने व अपने परिवार के स्वार्थ को अपने समाज के हित की अपेक्षा अधिक तरजीह देने के कारण ही भारत लगभग एक हजार वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा। यथा, अपने घर और परिसर की सफाई करके सार्वजनिक उपयोग के स्थानों पर कूड़ा डालने की दुष्प्रवृति इस मानसिकता का ही परिचायक है। पाश्चात्य मुल्कों में गलियों, पार्कों, शौचालयों में कहीं भी आपकों दीवारों में लिखा नहीं मिलता और न ही अन्य प्रकाश का कूड़ा करकट व गंदगी मिलती है। पान की पीक, तंबाकू की पीक, जहां मर्जी वहीं मलमूत्र विसर्जन, बीड़ी, सिगरेट के अधजले टुकड़े, अन्य प्रकार की गंदगी हमें शर्मशार नहीं करती। हम इसके आदी हैं। क्या आपने राष्ट्रमंडल खेलों में, खिलाड़ी-गाँव में व्याप्त गंदगी के बचाव में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन समिति के सचिव ललित भनोट के वक्तव्य पर गौर करके शर्म नहीं महसूस कि पाश्चात्य समाज और भारतीय समाज में सफाई के मानक भिन्न हैं।
2- भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार :-
सामाजिक हित के सापेक्ष अपने व अपने परिवार के हित को प्राथमिकता देने के कारण ही भारत में सर्वत्र भ्रष्टाचार का बोलबाला है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के वर्ष 2005 की रिपोर्ट में इस तथ्य का उल्लेख है कि प्रत्येक दो में से एक भारतीय नागरिक राशन कार्ड बनवाने, विवाह का प्रमाण पत्र बनवाने तथा थाने में एफआईआर लिखवाने जैसे कार्यों के लिए सरकारी मुलाजिमों को घूस देनी पड़ती है। करप्शन परसैप्शन इंडैक्स में वर्ष 2009 में 180 मुल्कों में भारत का स्थान 84 वां था। भ्रष्टाचार की मार सबसे अधिक गरीबों को झेलनी पड़ती है। गरीबी रेखा के नीचे जीवन निर्वाह करने वाले भारतीय नागरिकों को प्रतिवर्ष नौ अरब रुपये घूस के रूप में उन कामों को करने के लिए खर्च करने पड़ते हैं, जिन्हें उनके मुफ्त में करवाने का अधिकार है। ग्लोबल फाइनेंनसियल इंटीग्रिटी के अनुसार वर्ष 2000-2008 के बीच भारत से 125 अरब अमेरिकन डालर का कालाधन विदेश में चला गया।
भारत में भ्रष्टाचार टैक्स चोरी, धोखाधड़ी एवं घूसखोरी आदि समाज की जड़ों को दीमक की ही भांति खोखला कर रहा है। ठेकेदार सरकारी अधिकारियों को घूस देकर घटिया सड़कें व पुल बनाते हैं। दुर्भाग्य से आज यह स्थिति है कि जो जितना भ्रष्ट है उसे उसे समाज में उतना ही सम्मान मिल जाता है। इस समय दुष्चरित्र व्यक्ति ही समाज में समादृत है। युवा वर्ग को इस स्थिति को बदलना चाहिये।
3- पेशेवराना अंदाज :-
किसी भी पेशे में सफल होने के लिए अनुशासन अत्यंत महत्वपूर्ण है। कार्य के प्रति निष्ठा, समय की पाबंदी, व्यक्तिगत निष्ठा के स्थान पर सामाजिक निष्ठा आदि अत्यंत आवश्यक है। जिस काम के लिए वेतन मिले, उसे निष्ठापूर्वक करना। श्रम के प्रति सम्मान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
श्रीमद भागवत गीता में-
श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: पर धर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मो निधनं श्रेय: परधर्मोभयावह:।।
अध्याय तीन, श्लोक 35
यहां पर धर्म शब्द अंग्रेजी भाषा के रिलीजन का पर्याय नहीं है।
4- जाति, धर्म :-
15 अगस्त, सन् 1945 के दिन भारत के स्वतंत्र राष्ट्र बनने पर हमारे जननायकों ने भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाया। यदि वे चाहते हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान 14 अगस्त 1947 के दिन भारत से एक दिन पहले स्वतंत्र हुआ था और जिसने इस्लाम को राज्य धर्म बनाया। इसी की भांति भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर सकते थे। भारत में हिन्दुओं के अलावा मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध, पारसी तथा अन्य मतावलम्बी रहते हैं। देश प्रगति करे, अत: सभी नागरिकों का यह कर्तव्य है कि सब मिलजुल कर रहें। शांति बनाये रखें। राष्ट्र कि प्रगति के लिए सामाजिक समरसता अत्यंत है।
5- उद्यमिता विकास :-
इंफोसिस के संस्थापक दुर्भाग्य से हमारे मुल्क में विकास का ऐसा मॉडल अख्तियार कर लिया गया है जिसमें सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह न केवल रोजगार पैदा करे, बल्कि रोजगार बनाये भी रखे। श्री नारायणमूर्ति ने अपनी पुस्तक बेटर इंडिया, बेटर वल्र्ड में इस मॉडल की चर्चा करते हुए कहा है कि इसमें दक्षता एवं जिम्मेदारी के लिए कोई स्थान नहीं है। इस मॉडल के कारण
1- कार्य में दक्षता का अभाव
2- कार्य के प्रति अरुचि
3- अनुशासनहीनता
4- योग्य व्यक्तियों का हतोत्साहित होना आदि अनेक दोष हैं।
श्री नारायणमूर्ति का यह स्पष्ट मत है कि भारत को यदि विकसित राष्ट्र बनाना है तो हमें इस मॉडल को धीरे-धीरे छोडऩा होगा। आज ऐसे युवाओं की आवश्यकता है जो स्वरोजगार के लिए उद्यम करें। राज्य से यही अपेक्षा है कि वह उद्योगों को फलने-फूलने के लिए उचित वातावरण एवं मूलभूत सुविधाओं के विकास में सहायक हों।
6- सामाजिक सुरक्षा:-
संयुक्त राज्य अमेरिका में सामाजिक सुरक्षा अच्छी एवं संतोषजनक व्यवस्था है। यद्यपि इस व्यवस्था के भी कई आलोचक हैं। भारत में जहां हमारी संस्कृति मातृ देवोभव, पितृ देवोभव की शिक्षा देती है। परंतु वहीं अब पश्चिम के प्रभाव से जमाने की फिजा बदल रही है। अक्सर ऐसे उदाहरण देखने व सुनने को मिलते हैं, जहां वृद्धावस्था में माँ-बाप को तिरस्कृत किया जा रहा है। परिवार टूट रहे हैं। सामाजिक सुरक्षा में आर्थिक सुरक्षा एवं आवासीय व्यवस्था, चिकित्सा सुविधाओं आदि की पुख्ता व्यवस्था आदि आते हैं। भारत में वैकल्पिक व्यवस्था की अनुपस्थिति में हमारी परंपरागत पारिवारिक व्यवस्था ही सर्वोत्तम है।
                                                                                 ------------------
                                                                         कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति
                                                                                          -----------------

No comments:

Post a Comment

Thanks