...........चिकित्सा जगत का बदलता स्वरूप...............
चिकित्सक भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं। इस वाक्य को इसलिए भी इसे जोर देते हुए लिख रहा हूँ कि मैं आज डाक्टर की वजह से ही इस लेख को लिखने तक की सफलतम जीवन यात्रा पर हूँ...। व्यक्तिगत मामले पर अधिक चर्चा न करते हुए मैं डाक्टर के पवित्र पेशे की वास्तविकता और वर्तमान में विदू्रप हो चुके चरित्र पर भी चर्चा करना चाहूँगा।
चिकित्सा जगत में नित नये अनुसंधान हो रहे हैं। नई-नई दवाइयों और उपचार के विधियों से असाध्य रोग भी साध्य हो गये हैं। जिस क्षय रोग के चलते व्यक्ति के लिए अंतिम सांसें गिनना ही शेष रह जाता था। परिवार से ही उपेक्षित हो जाता था। आज वह सामान्य तरीके से उपचार से पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है। यहां तक कि हार्ट के गंभीर रोगियों का इलाज भी बेहद आसान हो गया है। पोलियो से लेकर खसरे तक के टीके ने इस रोग को पनपने से पहले ही खत्म कर दिया है। कैंसर जैसी बीमारी का उपचार तक खोज लिया गया है। एड्स/एचआईवी जैसी असाध्य बीमारी का उपचार भी चिकित्सा जगत खोज रहा है। स्टेम सेल नाम से ऐसा उपाय ढूंढ लिया गया है कि शरीर के मृत अंग को भी पुनर्जीवित किया जाने लगा है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा, आपाधपी और तनावभरी जिन्दगी में व्यक्ति की औसत आयु भले ही कम हो गयी हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि चिकित्सा की आधुनिक तकनीक से मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुके मरीज का सफल उपचार भी होने लगा है। चिकित्सा का क्षेत्र निरंतर व्यापक होता जा रहा है। जहां पहले एक ही वैद्य शरीर की संपूर्ण व्याधियों का पूरा इलाज करता था, अब तो हर मर्ज का एक अलग स्पेशलिस्ट डाक्टर है। नि:संदेह ही माना जा सकता है कि दुनियां में चिकित्सक भगवान का ही दूसरा रूप है। जिसकी बदौलत यह सब संभव हो गया है।
आर्थिक युग में दूसरा रूप देखें तो पवित्र पेशा बदनाम हो चुका है। धनोपार्जन की हवस ने चिकित्सक की संवेदनशीलता को खत्म कर दिया है। बड़े शहरों में ही नहीं छोटे शहरों में भी पूरी तरह प्रोफेशनलिज्म हावी हो चुका है। चिकित्सकीय पढ़ाई के समय मरीज व डाक्टर के आत्मीय संबंधों के बारे में भले ही कुछ पन्नों में पढ़ लिया जाता हो लेकिन पूरी तरह पेशे में उतरने के बाद तो कुछ चिकित्सकों को छोड़कर अधिकांश चिकित्सक संवेदनशून्य नजर आने लगे हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तब दिखता है जब गरीबी में गुजर-बसर कर रहे लोग इलाज के चलते अपना सबकुछ बेचकर सड़क पर भीख मांगने की कगार पर पहुंच जाते हैं। कई बार तो अस्पताल का पूरा पैसा जमा न करने पर लाश तक छुपा ली जाती है। अमीर व गरीब में फर्क तक नहीं किया जाता है। महिला की सामान्य डिलीवरी करने के बजाय पैसा कमाने के चलते आपरेशन कर दिया जाता है। कमीशन का रोग नेताओं व नौकरशाहों तक ही सीमित न होकर चिकित्सकीय पेशे में भी पूरी तरह पैठ बना चुका है। यहां तक की कई बार कमीशन के चलते जांच रिपोर्ट में मरीज को भ्रमित कर दिया जाता है। उसी भ्रम का फायदा भी उठा लिया जाता है। कभी-कभी तो सामान्य बीमारी होने पर भी आपरेशन कर दिये जाते हैं। सरकारी अस्पतालों में तो अधिक मेहनत न करनी पड़े या तो मरीज को रेफर कर दिया जाता है या फिर कमीशन के चलते निजी चिकित्सालय में भेज दिया जाता है। डाक्टर के इस पवित्र पेशे को जिस तरह ठेस पहुंचायी जा रही है यह आने वाले भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। जब तक जिन्दगी और मौत के बीच जुड़े गंभीर पेशे में मानवता व संवेदनशीलता जीवित नहीं रहेगी तब तक चिकित्सकों पर अंगुलियां उठते ही रहेंगी। भगवान के दूसरे रूप की तरह पूज्य माने जाने वाले डाक्टर को अपनी शुचिता व पवित्रता को बरकरार रखने के लिए अंत:करण में झांकना होगा। इसी उम्मीद के साथ...।
अच्छी जानकारी है...
ReplyDeleteफिरदोस जी धन्यबाद लेख पड़ने के लिए....
ReplyDeleteडाक्टर को अपनी शुचिता व पवित्रता को बरकरार रखना ही चाहिए|
ReplyDeleteआर्थिक युग में दूसरा रूप देखें तो पवित्र पेशा बदनाम हो चुका है। धनोपार्जन की हवस ने चिकित्सक की संवेदनशीलता को खत्म कर दिया है। बड़े शहरों में ही नहीं छोटे शहरों में भी पूरी तरह प्रोफेशनलिज्म हावी हो चुका है। चिकित्सकीय पढ़ाई के समय मरीज व डाक्टर के आत्मीय संबंधों के बारे में भले ही कुछ पन्नों में पढ़ लिया जाता हो लेकिन पूरी तरह पेशे में उतरने के बाद तो कुछ चिकित्सकों को छोड़कर अधिकांश चिकित्सक संवेदनशून्य नजर आने लगे हैं।
ReplyDeleteSatya kathan. Samasya aur Sujhaw dono hi vicharniy........Thanks
जब भ्रष्टाचार हर व्यवसाय में फ़ैल रहा है , तो चिकित्सक इससे कैसे अछूते रह सकते हैं। जब इंसान का जमीर मर जाता है तो चाहे वो किसी भी पेशे का क्यूँ न हो, वो इमानदार नहीं रह जाता। फिर भी कुछ चिकित्सक ऐसे भी हैं, जिनमें संवेदनाएं अभी बची हुई हैं।
ReplyDeleteअन्तः करण से निकला सच्चा आलेख
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेखा है आपका कितना कटु सत्य उजागर कर दिया है आपने इन शब्दों में-
ReplyDelete'जब गरीबी में गुजर-बसर कर रहे लोग इलाज के चलते अपना सबकुछ बेचकर सड़क पर भीख मांगने की कगार पर पहुंच जाते हैं। कई बार तो अस्पताल का पूरा पैसा जमा न करने पर लाश तक छुपा ली जाती है। अमीर व गरीब में फर्क तक नहीं किया जाता है। महिला की सामान्य डिलीवरी करने के बजाय पैसा कमाने के चलते आपरेशन कर दिया जाता है।'
Good One...
ReplyDeleteChandar Meher
इंग्लिश की क्लास
शुक्रिया।
ReplyDeleteइस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteलेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
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आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
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का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
पूरा पढ़ने के लिए :-
http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html
आर्थिक युग में जब माँ-बाप 10 -12 लाख admission फीस लेकर MBBS की शिक्षा दिलवा रहे हैं , MD /MS के लिए पुनः 30 -40 लाख देकर superspecialist बनने का सपना साकार कर पा रहे हैं , ऐसे में आप कैसे उनको गैर प्रोफेशनलिज्म का सबक देने की गुहार लगा सकते हैं ! यहाँ में स्पष्ट करना चाहता हूँ की ये समस्या संस्कारों की है, जो मेडिकल waste है, वह हमेशा किसी न किसी रूप में समाज में विकृति देता रहेगा ;
ReplyDeleteरही बात सरकारी अस्पतालों की, सरकारी अस्पताल नेतागिरी, प्रभुत्व , का अड्डा बन चुका है ; जब तक सरकारी अस्पतालों में 15 वर्षों से जमें हुए डॉक्टरों को अन्य तर सेवा करने का अवसर नहीं मिलता , जिसमे सरकार, प्रशासन हाथ में हाथ रख के बैठा है , तब तक कैसे पुराने डॉक्टर नए डॉक्टरों (अपने कनिष्ठों के समक्ष) एक उत्कृस्त उदाहरण पेश हो सकेगा और वह हिमालयी परिस्थितियों में कार्य करने के लिए अपने को तैयार कर सकेगा !
मेडिकल लाइन में संवेदना की कमी आई है; पर 95 % लोगो के कारण विश्वास कायम है, और रहेगा !
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ReplyDeleteभारतीय ब्लॉग लेखक मंच