Thursday, December 8, 2011

फायदे से अधिक नुकसान का भय

खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

:::दृष्टिकोण:::
खुदरा बाजार में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर देश में जिस तरह का बवंडर मचा है, इससे राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि आम व्यापारी वर्ग भी परेशान नजर आ रहा है। फायदे से अधिक इसके नुकसान का भय बना हुआ है। वालमॉर्ट जैसी कंपनियां अगर भारतीय बाजार पर कब्जा कर लेंगी तो आम व्यापारियों का क्या होगा? जल्दबाजी में अगर इस पर किसी तरह का निर्णय या राय देना उचित नहीं होगा। फिर भी विपक्षी दलों के घोर विरोध के बाद केन्द्र सरकार ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। हालांकि इस पर आम राय बनाने की दलील भी दी जा रही है। अब देखना है कि केन्द्र सरकार का जल्दबाजी में लिया गया निर्णय, कितना सही या कितना गलत होता है।
खुदरा बाजार में केवल 30 प्रतिशत ही सामान छोटे उद्योगों से खरीदा जाना और 70 प्रतिशत बड़े उद्योगों से खरीदने का औचित्य भी नहीं समझ में आता है। अगर पूरी सामग्री विदेशों से ही आएगी। विदेशों की घटिया सामग्री का उपयोग भारतीय करेंगे तो इसके दूरगामी परिणाम घातक ही होंगे। विपक्षी दलों का विरोध करना जायज लग रहा है लेकिन इस योजना के महत्वपूर्ण व लाभकारी मुद्दे गौण हो गये। अगर गंभीरता से विचार किया जाय तो लाभ नहीं के बराबर और घाटा अधिक नजर आ रहा है।
केन्द्र सरकार के इस निर्णय से कई सवाल भी खड़े हो रहे थे। अगर वालमार्ट जैसी विदेशी कंपनियां 49 प्रतिशत में ही निवेश को तैयार थी तो क्यों 51 प्रतिशत तक की अनुमति दी गयी। यह भी सर्वविदित है कि अमेरिका में रिटेल कारोबार में वालमार्ट का वर्चस्व है। इस तरह की कंपनियों का रिकार्ड रोजगार देने के मामले में भी ठीक नहीं है। अगर हमारी सरकार रोजगार के नाम पर ठेकेदार के अधीन भारत के अधिकांश लोगों को रोजगार देने की बात करती है तो इस निर्णय को हमेशा के लिए ही ठंडे बस्ते में डाल देना उचित होगा।

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