अलौकिक सुख देने वाली अविस्मरणीय यात्रा के दौरान चीन की दिक्कतें भले ही
यात्री भूल जाते हैं लेकिन इनकी अनदेखी भी नहीं कर पाते हैं। कहते हैं,
कमियां तो होती है लेकिन प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ ही भगवान शिव में अटूट
आस्था, श्रद्धा के आगे इसे छुपाना पड़ता है।
विश्व प्रसिद्ध कैलास मानसरोवर यात्रा का चरम आनंद में तब व्यवधान
उत्पन्न होता है जब तीर्थ यात्री चीन की सरहद में पहुंच जाते हैं। न भाषा
समझ में आती है और न खाने के लिए कुछ मिलता है। टॉयलेट के लिए भी खुले में
जाना पड़ता है। जबकि पिछले वर्ष से चीन ने शुल्क भी बढ़ा दिया है।
दिल्ली से 865 किलोमीटर की 28 दिन की यात्रा के दौरान 55 किलोमीटर की
परिक्रमा की जाती है। अलौकिक सुख देने वाली अविस्मरणीय यात्रा के दौरान
चीन की दिक्कतें भले ही यात्री भूल जाते हैं लेकिन इनकी अनदेखी भी नहीं कर
पाते हैं। कहते हैं, कमियां तो होती है लेकिन प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ
ही भगवान शिव में अटूट आस्था, श्रद्धा के आगे इसे छुपाना पड़ता है। कठिन
मार्ग और लंबी दूरी की यात्रा के दौरान तीर्थयात्री हिमालय की
श्रृंखलाबद्ध चोटियों और नैसर्गिक सौन्दर्य का लुत्फ उठाते हुए जब दिल्ली
की तरफ चलते हैं तो चीन की दिक्कतें भुलाने का प्रयास करते हैं। फिर भी
चीन के असहयोगी रवैये की व्यथा भी होने लगती है। भारत की सीमा ताकलाकोट के
बाद से ही चीन में रहने के लिए झोपडिय़ां तो हैं लेकिन दु:खद है कि यहां पर
न ही शौचालयों की व्यवस्था है और न ही खाने का कोई प्रबंध। यहां पर केवल
मांसहार है, भगवान शिव की यात्रा पर जाने वाले यात्री मांस का भक्षण करने
की सोच भी नहीं सकते हैं। चीन की सीमा में प्रवेश होने से पहले पिछले वर्ष
तक 700 डॉलर जमा करते थे लेकिन इस वर्ष से 851 डॉलर जमा होने लगे हैं।
गुजरात के अहमदाबाद शहर के यात्री रोहित पंचाल कहते हैं कि 12 दिन चीन में
रहना पड़ता है, इसमें तीन दिन मुश्किल हो जाते हैं। जब परिक्रमा करते हैं,
तब लगता है मानो शिव साक्षात दर्शन दे रहे हैं। यात्री बार-बार कहते हैं
कि चीनी लोगों का सहयोग नहीं मिलता है। भाषा की दिक्कत होती है। इसके
अलावा कई अन्य दिक्कतें चीन में होती है। उन्होंने भारत सरकार के विदेश
मंत्रालय से इस पर गंभीरता से विचार करने की सलाह भी देते है, जिससे की
चीनियों के व्यवहार में सुधार हो सके और यात्रा का आकर्षण और बढ़े।
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