यह रास्ता कई जगह इतना खराब है कि एक ही व्यक्ति उस रास्ते पर चल सकता है। उबड़-खाबड़ व कंटीली राह से लोगों का जीवन बेहद मुश्किलभरा हो गया है। हांफते-हांफते लोगों की जान हथेली पर आ गई है।
गणेश जोशी
सफेद बाल, चेहरे पर झुर्रियां, लड़खड़ाते कदम। पीठ में सिलेंडर लिए महिलाएं
व युवक। कंधे पर सब्जी की भारी पेटियां व बोरे लादे हुए। विकलांगों के
डगमगाते कदम। बच्चों को संभालने का प्रयास करते परिजन। पसीने से तर-बतर
हांफते-हांफते 10 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई व ढलान का सफर तय करने की मजबूरी
ने आपदा पीडि़तों के पांवों व कंधों में घाव कर दिए हैं। यह विषम परिस्थिति
है बलुवाकोट से धारचूला जाने वाले एकमात्र मार्ग की। यह मार्ग 16 जून की
आपदा से तबाह हो गया। जीने की विवशता ने रोजमर्रा की आवश्यकता के लिए
हजारों लोगों को ऐसा दर्द दे गया।
काली नदी के प्रचंड वेग से बचाकर चट्टान के बीच नौ किलोमीटर की यह सड़क अब कब तक बनेगी? इसकी तो जल्द उम्मीद नहीं है लेकिन हवाई यात्रा करने वाले जनप्रतिनिधि व नौकरशाहों को पीडि़तों के पांवों के छालों का दर्द महसूस होता नहीं दिख रहा है। चढ़ाई चढ़ते हुए जब आसमान में हेलीकाप्टर उड़ता दिखता है तो लोग सोचते है, काश! अधिकारियों व अपनों के लिए तो यह घूम रहा है। रोजमर्रा का कुछ सामान तो इससे छोड़ दिया जाता तो प्रकृति की विनाशलीला की त्रासदी झेलने के बाद भी व्यवस्था का ऐसा क्रूर दंश हम झेलने को विवश नहीं होते। यहां पर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, केन्द्रीय मंत्री डा. हरीश रावत के लोकलुभावन घोषणाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर होता नहीं दिख रहा है। हालात यह हैं कि धारचूला ब्लाक के 36 गांवों को जोडऩे वाला एकमात्र मार्ग पिथौरागढ़ से होकर बलुवाकोट होते हुए धारचूला जाता है। बलुवाकोट से निगापानी केवल पांच किलोमीटर की दूरी पर है। यह मार्ग 16 जून को काली नदी के तेज प्रवाह के चलते तीन स्थानों पर पूरी तरह बह गया है। यहां तक दर्जनों भवनों व खेतों को अपने आगोश में ले गया। बलुवाकोट से दो कदम आगे घोचा से कालिका गांव तक डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है, फिर कालिका से दो किलोमीटर पैदल मार्ग के बाद तीन किलोमीटर की चढ़ाई व ढलान है। इसके बाद गोठी से एक किलोमीटर से अधिक सड़क पर पैदल चलते हुए तीन किलोमीटर की बेहद कठिन रास्ते की चढ़ाई फिर ढलान के बाद निगालपानी पहुंचना पड़ रहा है। यह रास्ता कई जगह इतना खराब है कि एक ही व्यक्ति उस रास्ते पर चल सकता है। उबड़-खाबड़ व कंटीली राह से लोगों का जीवन बेहद मुश्किलभरा हो गया है। हांफते-हांफते लोगों की जान हथेली पर आ गई है। जीआईसी धारचूला में रहने वाले सोबला गांव के पीडि़त राम सिंह जेठा, मान सिंह बनौल बताते हैं कि तीन पहाड़ी पार कर बलुवाकोट से खाने की सामग्री ढोकर लानी पड़ रही है। पीठ पर गैस सिलेंडर लादे धारचूला निवासी बिसमती कहती हैं कि गैस सिलेंडर के आने की सूचना मिली है, बलुवाकोट जा रहे हैं। क्या करें, जब हमारी किस्मत ही ऐसी है। गर्भवती महिला को यहां से पिथौरागढ़ जा रही थी। 83 साल के धरम सिंह हांफते हुए कहते हैं कि उम्र के इस पड़ाव में यह झेलना पड़ रहा है। पहाड़ पार करते समय पसीने से तरबतर लोग सिर व आंखों में जलन की समस्या की शिकायत भी कर रहे हैं। हालांकि, ग्रिफ सड़क बनाने में जुटा है। लेकिन यह कार्य कब पूरा होगा, और लोग की दिनचर्या पटरी पर आएगी। जल्द इसकी उम्मीद नहीं नजर आ रही है।
काली नदी के प्रचंड वेग से बचाकर चट्टान के बीच नौ किलोमीटर की यह सड़क अब कब तक बनेगी? इसकी तो जल्द उम्मीद नहीं है लेकिन हवाई यात्रा करने वाले जनप्रतिनिधि व नौकरशाहों को पीडि़तों के पांवों के छालों का दर्द महसूस होता नहीं दिख रहा है। चढ़ाई चढ़ते हुए जब आसमान में हेलीकाप्टर उड़ता दिखता है तो लोग सोचते है, काश! अधिकारियों व अपनों के लिए तो यह घूम रहा है। रोजमर्रा का कुछ सामान तो इससे छोड़ दिया जाता तो प्रकृति की विनाशलीला की त्रासदी झेलने के बाद भी व्यवस्था का ऐसा क्रूर दंश हम झेलने को विवश नहीं होते। यहां पर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, केन्द्रीय मंत्री डा. हरीश रावत के लोकलुभावन घोषणाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर होता नहीं दिख रहा है। हालात यह हैं कि धारचूला ब्लाक के 36 गांवों को जोडऩे वाला एकमात्र मार्ग पिथौरागढ़ से होकर बलुवाकोट होते हुए धारचूला जाता है। बलुवाकोट से निगापानी केवल पांच किलोमीटर की दूरी पर है। यह मार्ग 16 जून को काली नदी के तेज प्रवाह के चलते तीन स्थानों पर पूरी तरह बह गया है। यहां तक दर्जनों भवनों व खेतों को अपने आगोश में ले गया। बलुवाकोट से दो कदम आगे घोचा से कालिका गांव तक डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है, फिर कालिका से दो किलोमीटर पैदल मार्ग के बाद तीन किलोमीटर की चढ़ाई व ढलान है। इसके बाद गोठी से एक किलोमीटर से अधिक सड़क पर पैदल चलते हुए तीन किलोमीटर की बेहद कठिन रास्ते की चढ़ाई फिर ढलान के बाद निगालपानी पहुंचना पड़ रहा है। यह रास्ता कई जगह इतना खराब है कि एक ही व्यक्ति उस रास्ते पर चल सकता है। उबड़-खाबड़ व कंटीली राह से लोगों का जीवन बेहद मुश्किलभरा हो गया है। हांफते-हांफते लोगों की जान हथेली पर आ गई है। जीआईसी धारचूला में रहने वाले सोबला गांव के पीडि़त राम सिंह जेठा, मान सिंह बनौल बताते हैं कि तीन पहाड़ी पार कर बलुवाकोट से खाने की सामग्री ढोकर लानी पड़ रही है। पीठ पर गैस सिलेंडर लादे धारचूला निवासी बिसमती कहती हैं कि गैस सिलेंडर के आने की सूचना मिली है, बलुवाकोट जा रहे हैं। क्या करें, जब हमारी किस्मत ही ऐसी है। गर्भवती महिला को यहां से पिथौरागढ़ जा रही थी। 83 साल के धरम सिंह हांफते हुए कहते हैं कि उम्र के इस पड़ाव में यह झेलना पड़ रहा है। पहाड़ पार करते समय पसीने से तरबतर लोग सिर व आंखों में जलन की समस्या की शिकायत भी कर रहे हैं। हालांकि, ग्रिफ सड़क बनाने में जुटा है। लेकिन यह कार्य कब पूरा होगा, और लोग की दिनचर्या पटरी पर आएगी। जल्द इसकी उम्मीद नहीं नजर आ रही है।
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