कई स्वयंभू नेता बहुत बड़े हैं। इतने बड़े की वह अपने को राज्य स्तर का भी नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का समझने लगते हैं। वह प्रत्येक व्यक्ति को का नाम से पुकारते हैं।
नेता बहुत हैं। हर दूसरे घर में, हर गली व मोहल्ले में। नेताओं की बाढ़ सी आ गई। कई स्वयंभू नेता बहुत बड़े हैं। इतने बड़े की वह अपने को राज्य स्तर का भी नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का समझने लगते हैं। वह प्रत्येक व्यक्ति को का नाम से पुकारते हैं। उस व्यक्ति को बहुत अच्छा लगता है, जब कोई बड़ा नेता उनका नाम पुकार लेता है। उनसे हाथ मिला लेता है। वह गरीब भी हो सकता है या पैसे वाला भी। ये नेता जन-जन के नेता कहलाए जाते हैं। इनके पिछलग्गू नेता भी इन्हें इतनी ऊंचाई पर पहुंचा देते हैं कि फिर इन्हें जमीन नहीं दिखती है। तमाम कथित पत्रकार भी उनसे वैसे ही सवाल करने लगते हैं, जो उन्हें अच्छे लगते हैं। कथित तौर पर जन-जन के यह वरिष्ठ व कर्मठ नेता वरिष्ठ पदों पर बैठे अधिकारियों से मित्रता गांठ लेते हैं। उनके मीठी-मीठी बातें कर लेते हैं। इसके बाद अगर कोई जुझारू पत्रकार उनसे जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों पर सवाल करते हैं तो वह बिफर जाते हैं। भड़क जाते हैं। आग-बबूला हो जाते हैं। यहां तक उस पत्रकार को उसकी हैसियत बताने से भी नहीं चूकते। उसे निम्न स्तर व निम्न सोच का पत्रकार घोषित करने लगते हैं। कई बार तो जनसरोकारों से जुड़े सवाल करने वाले पत्रकारों को हटाने तक की भी धमकी दे डालते हैं। लोकतंत्र में लोक के महत्व के विषयों की उपेक्षा करने वाले ऐसे कथित जन-जन के नेता ही देश को दीमक की तरह चाट रहे हैं।
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