Saturday, March 1, 2014

विज्ञान के व्यवहारिकता की औपचारिकता


 


    विज्ञान केवल कक्षा तक पढ़ा जाने वाला विषय नहीं है। यह हमारे परिवेश में हैं। वातावरण में हैं लेकिन हम इसे समझना नहीं चाहते हैं। विडंबना यह है कि इस ज्ञान को व्यवहारिक तरीके से समझाया नहीं जाता है। विज्ञान के इस युग में आज भी अंधविश्वास व रुढि़वादिता कायम है। जबकि 28 फरवरी 1928 को महान वैज्ञानिक सीवी रमन ने रमन प्रभाव खोज की घोषणा की थी। इसी दिवस को वर्ष 1986 से भारत सरकार ने प्रतिवर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाने का निर्णय लिया था। इसका उद्देश्य विज्ञान से होने वाले उपलब्धियों के प्रति समाज में जागरूकता लाना है। वैज्ञानिक सोच पैदा कर प्रतिभावान बच्चों के अंदर छिपी प्रतिभा को उजागर करना है।
राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद व विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। सर सीवी रमन को इस खोज के लिए 1930 में नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का मूल उद्देश्य छात्र-छात्राओंको विज्ञान के लिए प्रेरित करना है। उनमें रुचि पैदा करनी है, जिससे कि वह भविष्य में विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर सकें। विजन 2020 के सपने को साकार कर सकें। औपचारिकता के लिए इस दिन कई जगह सेमिनार, गोष्ठियां, सम्मेलन आदि का आयोजन भी होगा। चंद शिक्षक व विद्यार्थी की इसमें उपस्थिति रहेगी। अंत में यह कार्यक्रम केवल कुछ लोगों के भाषणों तक सीमित रह जाएगा। अगर हकीकत में देखें तो उत्तराखंड में माध्यमिक से लेकर राजकीय महाविद्यालयों में विज्ञान विषय के पठन-पाठन की स्थिति तक बेहद दयनीय है। राज्य के 70 राजकीय महाविद्यालयों में भौतिक विज्ञान में 81 पद स्वीकृत हैं, इसमें 57 ही कार्यरत हैं। रसायन विज्ञान में 95 पदों में से 70 कार्यरत, जंतु विज्ञान में 82 पदों में से 58 और वनस्पति विज्ञान में 84 पदों में से 64 शिक्षक ही कार्यरत हैं। जितने पद रिक्त हैं, उसके कई गुना अधिक पदों की और जरुरत है।

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