Monday, October 18, 2010

पुतला तो जल गया मगर कलयुगी रावण...

कागज के पुतले को जला देने से भर से कलयुग का रावण नहीं जल सकता है। केवल रस्म अदायगी ही हो सकती है। इतने से ही कैसे काम चलेगा? कुछ समझ में नहीं आता है। घोर कलयुग में जहां पर नजर दौड़ायें दशानन ही नहीं बल्कि हजारों सिर लिए हुए रावण ही रावण नजर आते हैं। जहां हाहाकार मचा हुआ है। घोर मानसिक कष्ट है। अवसाद है। भुखमरी है। गरीबी है। उत्पीडऩ है। छटपटाहट है। द्वेष है। चीख-पुकार मची है, कहीं बलात्कार, कहीं चोरी, कहीं हत्या, कहीं गंदगी, कहीं निरक्षरता, कहीं बेरोजगारी, कहीं भ्रष्टाचार और कहीं बीमारी की। इसके लिए दोषी कौन है, जो सिंहासन पर बैठा है। अगर वहीं रावण है तो निश्चित ही चारों ओर राक्षस ही राक्षस होंगे। इस स्थिति में जनता निर्भय होकर कैसे रह सकेगी? हम आप सब समझ रहे होंगे। हम तो एक दिन विजयदशमी पर्व पर रावण का पुतला बना देते हैं, और जला देते हैं। असत्य पर सत्य की जीत का जश्न मना लेते हैं। भाषण भी होते हैं, कहा जाता है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों पर हम सभी को चलना होगा। उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेनी होगी। लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है, जो उपदेश दे रहे होते हैं, समाज के सबसे अधिक पतित वहीं नजर आते हैं जो केवल भ्रम पैदा कर अपना मतलब निकालकर आगे निकल जाते हैं। भले ही पीछे जनता जी रही हो या मर रही हो। इसकी कोई परवाह नहीं। असली मुद्दा तो यह है कि हमारे भीतर रावण के पुतले को जलाने की समझ कब विकसित होगी? समाज में शौर्य प्रकट करता रावण पर श्रीराम की जीत के जश्न का आधार कैसे तय होगा? प्रकांड विद्वान रावण के अहंकार के आगे कलयुग के राक्षसों (माफियाओं) द्वारा गरीब के धन से बनाये गये ऊंचे व चौड़े पुतले के जलने की औपचारिकता कब तक निभायी जाती रहेगी? भारतीय संस्कृति व लोकतंत्र के ध्वजवाहकों के साथ हो रहे अमानवीय अत्याचार के खिलाफ लडऩे के लिए भगवान श्रीराम कब अवतार लेंगे? त्रेता युग के राम ने जिस तरह रावण पर विजय प्राप्त कर आज तक प्रेरणा का स्रोत बने रहे, लेकिन इस कलयुग में कौन होगा प्रेरणास्रोत जो घर-घर में सिर उठा रहे रावण नहीं रावणों का अंत करेगा। ताकि फिर त्रेता युग की तरह कलयुग में भी विजयोल्लास मनाया जा सकेगा।

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति, ब्लोगिंग की दुनिया में स्वागत!!! यहाँ भी देखें: http://navinideas.blogspot.com/2010/02/blog-post.html

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  2. सुप्रभात , हम सब यही सोचते हैं .....सोचते रहते हैं ......मेले में .....अकेले में .....करना ....क्यूँ करना .....आफीरौल....
    लेकिन समय गवाह है ....हर बेचैनी के आगे राह है .....सुबह ज़रूर आएगी .....बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी ....
    धन्यवाद ......जगाने के लिए .......
    .

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Thanks