बदन में फटेहाल कपड़े। शरीर में गंदगी। नंगे पांव लेकर भीख मांगते हुए बच्चे थर्टी फस्र्ट के जश्न से महरूम थे। उन्हें न ही नये साल की जानकारी थी और न ही स्कूल की। केवल दिन भर भीख मांगकर शाम तक 50-60 रुपये कमाकर पेट का गुजारा करना उनकी नियति बन गयी।
हल्द्वानी में एमबी पीजी कालेज के बाहर शनिवार को सुबह से ही 11 वर्षीय सहाना अपनी बहन व मामू के साथ वहां पहुंच गयी। तीनों के हाथ में तेल से भरा कटोरा था। इसमें कुछ पैसे भी थे, जो भी कालेज के बाहर आ रहा था, उसे पैसे देने को मजबूर कर रहे थे। खासकर वहां पर खड़े लड़के-लड़कियों को देखकर ही, उनकी जोड़ी की दुआ करने लगते। कहते, 'आपकी जोड़ी सलामत रहे। किसी की नजर न लगे। आप खूब कमायें। कुछ हमें भी दे दीजिए। भूख लगी है, कुछ खा लेंगे। अधिकांश लड़के-लड़कियां हो या कोई और। कुछ न कुछ पैसे उनकी कटोरी में डाल देते। इसी से उनकी कमाई प्रतिदिन की 50 से 60 रुपये तक हो जाती। सहाना बताती हैं कि दो रुपये पांच रुपये लोग दे देते हैं। इस पैसे से चावल खरीदकर ले जायेंगे, खाना बनायेंगे। उसका कहना था कि 17 नंबर गली में रहते हैं। चार भाई दो और बहनें हैं। यहां पर भीख मांगने के लिए उसके साथ उसकी बहन और मामू भी है। एक दिन में 60 रुपये तक मिल जाते हैं, अभी तक 30 रुपये ही हुये हैं। करन से स्कूल के बारे में पूछा तो, कहने लगा स्कूल नहीं जाते हैं। आज 15 रुपये हो गये हैं। रेलवे स्टेशन में शिक्षा विभाग की ओर से घुमंतू व भीख मांगने वाले बच्चों के लिए संचालित मोबाइल स्कूल वैन के बारे में पूछा तो करन ने कहा, हमें इसके बारे में किसी ने नहीं बताया। थर्टी फस्र्ट व नये साल से अंजान तीनों हंसते हुए कालेज गेट से चले गये। वहीं केमू बस बस स्टेशन पर बच्चे कूड़े बीन रहे थे, जहां थर्टी फस्र्ट के जश्न में लोग सराबोर थे, वहीं ये बच्चे कूड़ा बीनते हुए शिक्षा विभाग के अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों से लेकर इनके नाम पर करोड़ों रुपये डकारने वाले गैर सरकारी संगठनों को चिढ़ा रहे थे।
aacha likha hai mahoday aapne, aabhar
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