भगवान केदारनाथ की की पूजा भी जरूरी है। अवश्य होनी चाहिए। जीवन में इसका भी विशेष महत्व है। लेकिन जब देवभूमि में पूजा को लेकर सत्तालोलुप नेताओं को बयानबाजी करने में जो आनंद आ रहा है। यह आनंद भीषण आपदा से प्रभावित लोगों के आंसू पोछने में आता तो निश्चित तौर पर राज्य का विकास होता। आलम यह है कि पिथौरागढ़ से लेकर बागेश्वर व उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग, टिहरी क्षेत्रों में लोग आज भी भूखे सोने का विवश हैं। रोटी, कपड़ा और मकान के लिए तरस रहे हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को केवल अपना यशोगान से मतलब है, इससे अधिक कुछ नहीं...। अगर वास्तव में विकास के लिए गंभीरता से सोचा जाता, अधिकारियों को पारदर्शिता से कार्य करने के लिए सख्त निर्देश दिए गए होते तो आपदा के तीन महीने के बाद भी लोग तरसने को मजबूर नहीं होते। विडंबना ही है कि इन प्रभावित क्षेत्रों में आज किसी की तबियत खराब हो जाए तो उसे दवा देने के लिए एक अदद डाक्टर तक नहीं है। पहले की तरह ही कमीशनखोरी के लिए बनाए गए अस्पताल के भवन भी मुंह चिढ़ा रहे हैं। बाकायदा क्षेत्र में विधायक हैं, नाम के लिए सांसद साहब भी हैं। पर हकीकत में देखें तो हालात बेहद नाजुक हैं। इन जनपदों के प्रभावित क्षेत्रों में लोग बेरोजगार हो गए हैं। आपदा ने उनसे घर छीन लिया, मवेशियों को छीन लिया और पैदल चलने तक के रास्ते भी नहीं छोड़े। पलायन करने को मजबूर प्रभावित लेागों की सुध लेने के बजाय उत्तराखंड की सरकार बेबस व हताश नजर आ रही है। करोड़ों-अरबों रूपये तो मिल ही गए हैं। इस धन का सदुपयोग करने के लिए छोटी-बड़ी तमाम योजनाएं बनाई जा रही हैं, जबकि पहले से ही कई योजनाएं हैं। इन योजनाअेां का क्रियान्वयन के बजाय इस धन के बंदरबांट पर ही अधिक ध्यान दिख रहा है। विपक्षी दल भाजपा ने पूछा कि सरकार श्वेत पत्र जारी करे। आपदा के बजट का हिसाब दे तो कांग्रेस भी कम नहीं, वह भला क्यों हिसाब देती? उसने भी जवाब दिया कि पहले भाजपा 2010 की आपदा का हिसाब दे। फिर कांव-कांव करने वाले विपक्षी दल के नेताओं ने भी चुप्पी साध ली। केवल जनता को बेवकूफ बनाओ और रोटी सेंको।
Tuesday, September 10, 2013
स्वयं के यश में मस्त 'आपदा' के विजय
भगवान केदारनाथ की की पूजा भी जरूरी है। अवश्य होनी चाहिए। जीवन में इसका भी विशेष महत्व है। लेकिन जब देवभूमि में पूजा को लेकर सत्तालोलुप नेताओं को बयानबाजी करने में जो आनंद आ रहा है। यह आनंद भीषण आपदा से प्रभावित लोगों के आंसू पोछने में आता तो निश्चित तौर पर राज्य का विकास होता। आलम यह है कि पिथौरागढ़ से लेकर बागेश्वर व उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग, टिहरी क्षेत्रों में लोग आज भी भूखे सोने का विवश हैं। रोटी, कपड़ा और मकान के लिए तरस रहे हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को केवल अपना यशोगान से मतलब है, इससे अधिक कुछ नहीं...। अगर वास्तव में विकास के लिए गंभीरता से सोचा जाता, अधिकारियों को पारदर्शिता से कार्य करने के लिए सख्त निर्देश दिए गए होते तो आपदा के तीन महीने के बाद भी लोग तरसने को मजबूर नहीं होते। विडंबना ही है कि इन प्रभावित क्षेत्रों में आज किसी की तबियत खराब हो जाए तो उसे दवा देने के लिए एक अदद डाक्टर तक नहीं है। पहले की तरह ही कमीशनखोरी के लिए बनाए गए अस्पताल के भवन भी मुंह चिढ़ा रहे हैं। बाकायदा क्षेत्र में विधायक हैं, नाम के लिए सांसद साहब भी हैं। पर हकीकत में देखें तो हालात बेहद नाजुक हैं। इन जनपदों के प्रभावित क्षेत्रों में लोग बेरोजगार हो गए हैं। आपदा ने उनसे घर छीन लिया, मवेशियों को छीन लिया और पैदल चलने तक के रास्ते भी नहीं छोड़े। पलायन करने को मजबूर प्रभावित लेागों की सुध लेने के बजाय उत्तराखंड की सरकार बेबस व हताश नजर आ रही है। करोड़ों-अरबों रूपये तो मिल ही गए हैं। इस धन का सदुपयोग करने के लिए छोटी-बड़ी तमाम योजनाएं बनाई जा रही हैं, जबकि पहले से ही कई योजनाएं हैं। इन योजनाअेां का क्रियान्वयन के बजाय इस धन के बंदरबांट पर ही अधिक ध्यान दिख रहा है। विपक्षी दल भाजपा ने पूछा कि सरकार श्वेत पत्र जारी करे। आपदा के बजट का हिसाब दे तो कांग्रेस भी कम नहीं, वह भला क्यों हिसाब देती? उसने भी जवाब दिया कि पहले भाजपा 2010 की आपदा का हिसाब दे। फिर कांव-कांव करने वाले विपक्षी दल के नेताओं ने भी चुप्पी साध ली। केवल जनता को बेवकूफ बनाओ और रोटी सेंको।
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