कमल दा यानी घुमक्कड़ पत्रकार व वरिष्ठ फ़ोटो पत्रकार कमल जोशी अब हमारे बीच नहीं रहे। तीन जुलाई को उन्होंने कोटद्वार में आत्महत्या कर ली। इस घटना से उत्तराखंड ही नही देश-विदेश में रहने वाले उनके शुभचिंतक शोक में हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़े एक प्रभावशाली शख्शियत का ऐसे जान देना। यह सुन, हर कोई अवाक है।
तीन साल पहले की बात है। दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में मेरी उनसे मुलाकात हुई। वरिष्ठ लेखक श्री देवेंद्र मेवाड़ी जी ने परिचय करवाया। इसके बाद उन्होंने वरिष्ठ कथाकार पंकज बिष्ट जी और वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी जी के साथ पुस्तक के एक स्टाल पर कई तस्वीरें खींची। उनका फ़ोटो खींचने का आनंद बेहद अनूठा। तब से मेरा उनसे लगाव सा हो गया। उनको फेसबुक में देखता। उनको पढ़ता। उनकी दुर्लभ तस्वीरों को निहारता। इसके बाद कर बार मुलाकात हुई। हालचाल पूछते। उनसे बात करने में बहुत अच्छा लगता। उनके अंदर पहाड़ का दर्द उमड़ता-घुमड़ता था। चिंतन करते थे। हमेशा विद्वानों के साथ सहज रहते। गंभीर विषयों पर गहन चर्चा करते। अक्सर उनके शुभचिंतक उनसे बात करने को उत्सुक रहते। ऐसे व्यक्तित्व का भी अचानक हतप्रभ कर देने वाला कदम उठाना। हर किसी को अंदर तक हिला गया।
मनोविज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते भी मैंने पढ़ा है और इस तरह की तमाम खबरों को लिखते समय भी एक बात महसूस की है। अगर कोई ऐसे विदा होता है तो वह पहले किसी न किसी व्यक्ति को इस बात की चर्चा अवश्य कर देता है।
शायद उन्होंने भी की हो...! पता नहीं...किससे?
आज इस घटना से मन दुखी सा है। प्रभु कमल दा की आत्मा को शान्ति प्रदान करे।
गणेश जोशी
तीन साल पहले की बात है। दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में मेरी उनसे मुलाकात हुई। वरिष्ठ लेखक श्री देवेंद्र मेवाड़ी जी ने परिचय करवाया। इसके बाद उन्होंने वरिष्ठ कथाकार पंकज बिष्ट जी और वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी जी के साथ पुस्तक के एक स्टाल पर कई तस्वीरें खींची। उनका फ़ोटो खींचने का आनंद बेहद अनूठा। तब से मेरा उनसे लगाव सा हो गया। उनको फेसबुक में देखता। उनको पढ़ता। उनकी दुर्लभ तस्वीरों को निहारता। इसके बाद कर बार मुलाकात हुई। हालचाल पूछते। उनसे बात करने में बहुत अच्छा लगता। उनके अंदर पहाड़ का दर्द उमड़ता-घुमड़ता था। चिंतन करते थे। हमेशा विद्वानों के साथ सहज रहते। गंभीर विषयों पर गहन चर्चा करते। अक्सर उनके शुभचिंतक उनसे बात करने को उत्सुक रहते। ऐसे व्यक्तित्व का भी अचानक हतप्रभ कर देने वाला कदम उठाना। हर किसी को अंदर तक हिला गया।
मनोविज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते भी मैंने पढ़ा है और इस तरह की तमाम खबरों को लिखते समय भी एक बात महसूस की है। अगर कोई ऐसे विदा होता है तो वह पहले किसी न किसी व्यक्ति को इस बात की चर्चा अवश्य कर देता है।
शायद उन्होंने भी की हो...! पता नहीं...किससे?
आज इस घटना से मन दुखी सा है। प्रभु कमल दा की आत्मा को शान्ति प्रदान करे।
गणेश जोशी