Sunday, June 9, 2013

तीसरे विकल्प के सपने में उत्तराखंड

गणेश जोशी

             मेरे दिमाग में आया कि क्यों न राज ठाकरे के महाराष्ट नवनिर्माण सेना की तरह उत्तराखंड नवनिर्माण सेना बना लूं। फिर कहते फिरूंगूा कि उत्तराखंड की राजनीति का तीसरा विकल्प बना। पिछले कुछ वर्षों से 10860292 आबादी व 70 विधानसभा क्षेत्र और पांच लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तराखंड में छोटे-छोटे अस्तित्वहीन दल कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं। सभी कहते हैं कि हम सुशासन देंगे। भ्रष्टाचार दूर करेंगे। जल, जंगल व जमीन की हिफाजत करेंगे। रोजगार की व्यवस्था करेंगे। राज्य को पर्यटन के क्षेत्र में विकसित करेंगे। बिजली, पानी, स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे। राज्य को मॉडल स्टेट बनाएंगे। सीमांत क्षेत्र सुरक्षित रहें, इस पर पूरा ध्यान दिया जाएगा। गांव से लेकर शहर का विकास जमीनी स्तर पर करेंगे। इसके साथ ही भाजपा व कांग्रेस की सरकारों पर भडास निकालते रहेंगे। कहेंगे, भाजपा व कांग्रेस की सरकार ने भारत के 27 वें राज्य उत्तराखंड को विकास नहीं विनाश की ओ ले गए। जहां लोगों में निराशा, हताशा व आक्रोश है। अब जनता हम पर विश्वास करेगी। जनता सब समझ गई है। उसे कौन कैसे लूट रहा है? ऐस कहने वाले में राज्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल थी। राज्य बनने से पहले यह दल कुमाउ व गढवाल को एक सूत्र में बांधने, राजधानी को गैरसैंण बनाने, पहाड के विकास को लेकर सजग थी लेकिन इस दल के अति महत्वाकांक्षी व पदलोलुप नेताओं में रार की वजह से यह बिखर गई। कभी चार तो कभी तीन फिर अब एक विधायक इस दल से चुना गया है। इस समय तो इस पार्टी के हालात बयां करने में शर्म महसूस होती है। यह दल अब पूरी तरह रसातल में पहुंच गया है। फिर भी कहते फिरते हैं, हम तीसरे विकल्प के रूप में उभर रहे हैं, पता नहीं कहां उभर रहे हैं। मीडिया के समक्ष ऐसा कहने में बेशर्म नेताओं को जरा सा भी संकोच नहीं होता है। उत्तर प्रदेश की राजनीति के बादशाह समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी भी राज्य में तीसरे विकल्प की बात करती हैं लेकिन बसपा के कुछ सीटों को छोडकर सपा तो खाता भी नहीं खोल सकी है। इसके साथ ही उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, उत्तराखंड लोकवाहिनी, भाकपा माले, उत्तराखंड रक्षा मोर्चा आदि ंिचदी दलों के चंद नुमाइंदे भी तीसरे विकल्प की हुंकार भरते हुए दिखाई देते हैं। ऐसी स्थिति में देवभूमि उत्तराखंड का विकास होगा या विनाश, फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन वर्तमान में जिस तरह के राजनीतिक हालात चल रहे हैं, इससे बेहतर व सुनहरे भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती है।

Saturday, June 8, 2013

विसंगतियों से निकले हकीकत का भारत


  गणेश जोशी

   "यदि राजशक्ति के केन्द्र में अन्याय होगा, तब तो सारा राष्ट अन्याय के खेल का मैदान ही बन जाएगा।" जयशंकर प्रसाद का कहा हुआ यह कथन आज की केन्द्र व राज्य सरकारों के लिए सटीक बैठती है। भ्रष्टाचार की बात करते-करते हम सभी थक गए और यह शब्द सुनते-सुनते पक गए। कथित बुद्धिजीवियों ने तो इसे शिष्टाचार मान लिया है। खैर, जो भी हो जिस तरह का तंत्र भारत में विकसित हो रहा है, यह देशहित में नहीं नजर आ रहा है। कांग्रेस को सत्ता में बने रहने का भले ही बेहतर अनुभव हो लेकिन देशहित के लिए किए जा रहे कार्यों को लेकर अभी तक परिपक्वता नहीं दिखती। अगर परिपक्वता होती तो हमारे देश में अभी तक कुपोषण, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, निरक्षरता, गरीबी, माफियाराज, गुंडागर्दी, माओवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद व देश व विदेश में जमा कालाधन जैसे मामले इतने बडे स्तर पर नहीं होते। इतने समय तक अगर हमारे देश में तमाम समस्याएं विकराल रूप धारण कर रही हैं तो इसका दोष हम किसे दें, कौन इसके लिए जिम्मेदार है, अब किसे आगे आना होगा। अन्ना हजारे की हुंकार व अरविंद केजरीवाल के आंदोलन से हम कुछ करेंगे या फिर यह मामले भी इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएंगे। हमारे शीर्ष स्तर से ही अन्याय का ख्ेाल खेला जा रहा है तो हम नीचे बेहतरी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के लिखे कोटेशन "हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा" हर जगह दिख जाता है। फिर भी हम भारत के नागरिक होने के नाते एक ऐसे भारत देश का सपना संजोते रहते हैं, जहा शांति हो, हर व्यक्ति रोजगार से जुडा हो, विविधता में एकता के नारे को हकीकत में साकार होता दिख रहे हों। आपसी प्रेम, भाइचारे की बात को धार्मिंक ग्रंथों की पन्नों से बाहर समाज में देख रहे हों, एकता, अखंडता, संप्रभुता, मौलिक अधिकार व कर्तव्यों की बातें भी संविधान की धाराओं तक सीमित न होकर भारत में रामराज्य के सपने को साकार करता दिख रहा हो, तो हम फिर से विश्व गुरू, सोने की चिडिया, विकसित राष्ट आदि कहलाने के योग्य व हकदार हो जाएंगे।

Thursday, June 6, 2013

उत्तराखंड राजनीति का शर्मनाक नाटक


गणेश जोशी
            
उत्तराखंड के राजनीतिक हालात बेहद खराब हो गए हैं। सरकार को एक साल हो गया है, विकास के नाम पर महज घोषणाएं हो रही हैं। आम जन परेशान हैं। सबसे अधिक खराब स्थिति यहां की व्यवस्था ने कर दी है। इस समय सत्तारूढ दल के आधा दर्जन विधायक अपनी ही सरकार पर विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। शुरूआत कर दी है सीमांत क्षेत्र धारचूला के विधायक हरीश धामी ने, इनके सुर में सुर और कई विधायक भी मिलाने लगे हैं। विधायकों का विकास के नाम पर इस तरह की आवाज बुलंद कराना सराहनीय है। यह विधायक खुलेआम कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सिर्फ घोषणा कर रहे हैं, जमीनी हकीकत में विकास कहीं नहीं हो रहा है। यह पूरी तरह सत्य है। ऐसा केवल छह-सात विधायकों के क्षेत्र में नहीं हो रहा है, जहां दिग्गज कैबिनेट मंत्री हैं, वहां भी विकास की बेहतर आस नहीं की जा सकती है। राज्य में पानी के लिए हैंडपंप लगा दिए, नल लगा दिए लेकिन पानी की बंूद नहीं टपक रही हैै। अस्पतालों के लिए भवन बना दिए डाक्टर नहीं हैं। विद्यालय भवन बना दिए लेकिन शिक्षक नहीं हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सितारंगज विधानसभा क्षेत्र में राजकीय महाविद्यालय खोलने की घोषणा की, जमीन आवंटन की प्रक्रिया भी हुई। कालेज को 2013-14 सत्र से शुरू करने का दावा किया गया है लेकिन यहां पर प्राचार्य से लेकर अन्य फैकल्टी के पद तक सृजित नहीं है। प्रदेश के हालात चिंतनीय है। अन्य विकास की बात करें तो मानसून ने दस्तक देना शुरू कर दिया है। बाढ राहत के लिए तमाम योजनाओं के लिए बजट दो साल से रिलीज ही नहीं हुआ है। इसके लिए प्रयास करने के लिए न ही समय राज्य सरकार को है और न ही राज्य से केन्द्र में कैबिनेट मंत्री हरीश रावत को है। बेहद शर्मनाक स्थिति है। केवल बहुगुणा फैक्टर व हरीश फैक्टर के नाम पर राज्य में विकास नहीं हो सकता है।
इस समय जो राजनीतिक हालात बने हुए हैं, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी कई बार यही विधायक बारी-बारी से राज्य सरकार पर विकास की उपेक्षा का आरोप लगाकर इस तरह का हाइप्रोफाइल नाटक कर चुके हैं। इसके पीछे अगर असल विकास का मकसद है तो निश्चित तौर पर राज्य हित के लिए हैं लेकिन हकीकत में कभी नेता ऐसा करते नहीं हैं। या नहीं कर रहे हैं। अगर अपने हित को साधने के लिए, पद लोलुपता या अन्य कारणों के चलते ऐसा नाटक रचा जा रहा है तो यह शर्मनाक और चिंतनीय है। विकास के इन मामलों विपक्ष में लडाई के लिए विपक्ष को भी आगे आना चाहिए, जो केवल मिशन 2014 के सपने संजो रही है। सबसे सुखद यह है कि विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने राज्य में भ्र्रष्टाचार और विकास के नाम पर जिस तरह की बातें समाज में प्रचारित कर दी हैं, इससे पूरी सरकार सकते हैं आ गई है। कुंजवाल नाराज विधायकों की बयानों का भी समर्थन कर रहे हैं। फिलहाल राज्य के जो भी राजनीतिक हालात बने हुए हैं, इसे किसी भी दृष्टिकोण से जायज नहीं ठहराया जा सकता है, इस तरह की नाटकबाजी, बयानबाजी, गुटबाजी से राज्य के उज्ज्वल भविष्य की कामना नहीं की जा सकती है।