Monday, September 30, 2013

शिक्षा की बेहतरी के लिए नेताओं से खोखली उम्मीद



उत्तराखंड में सबसे अधिक कर्मचारियों वाले शिक्षा विभाग की ऐसी दयनीय स्थिति शायद पहले कभी नहीं देखी गई होगी। हां, यह जरूर था कि कहीं पर मानकों से ज्यादा शिक्षक कार्यरत रहे तो कहीं पर अधिक विद्यार्थी होने के बाद भी शिक्षक नहीं। इस समय धार्मिक कार्यों में व्यस्त रहने वाले शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी की कथित सख्त रवैये से ऐसा लग रहा था कि 13 जनपदों के सभी प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों में छात्र व शिक्षक का अनुपात दुरूस्त हो जाएगा, लेकिन यहां तो बिल्कुल उल्टा हो गया।  पहले से ही उपेक्षित पहाड़ के विद्यालयों में शिक्षक भेजे जाने लगे, वह वहां जाने को तैयार नहीं। जिन विद्यालयों से उन्हें भेजा गया, वहां के विद्यालय शिक्षकविहीन हो गए। देश के भविष्य का निर्माण करने वाले सरस्वती के इन मंदिरों की दुर्दशा का भान शायद जमीनी स्तर से बहुत ऊपर से देखने की कोशिश कर रहे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को नहीं हो रहा होगा। अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षा अधिकारियों का हाल तो और भी बुरा है। स्कूलों का निरीक्षण करने जाते हैं, तो यह नहीं पूछते कि पढ़ाई का क्या हाल है? सिर्फ एक सवाल उनके जुबान पर रहता है कि इस योजना का कितना बजट कहां खर्च हुआ? इस सवाल से उन्हें व्यक्तिगत लाभ तो होता ही है, बाकी जिम्मेदारियों से भी इतिश्री मान लेते हैं। इस समय कुमाऊं के अधिकांश विद्यालयों के बच्चों को शिक्षकों के लिए नेताओं की तरह सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करने को बाध्य होना पड़ रहा है। छमाही परीक्षा सिर पर हैं। ऐसे हालातों में हम अपने बच्चों को कहां ले जा रहे हैं? एक करोड़ 86 लाख की आबादी वाले खूबसूरत राज्य के सपनों पर पलीता लगा रहे नेताओं को आखिर शिक्षा जैसे अहम मुददे को लेकर कब अक्ल आएगी? विषम भौगोलिक परिस्थिति वालेे इस छोटे में राज्य में राजनीतिक विषमता के इस दौर में भ्रष्ट, लाचार, असहाय और बेचारे नेताओं से किसी तरह की उम्मीद करना भी बेइमानी सा प्रतीत होने लगा है।

Friday, September 13, 2013

मोदी के हवाई उल्लास में भारत की चुनौती


अहा, आज का दिन मानो कितना खुशी का है। बहुत अच्छा लग रहा होगा, उन भाजपा के कार्यकर्ताओं को, जो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को पीएम बनते हुए देखना चाहते हैं। कई कार्यकर्ता इतने जश्न में डूब गए हैं कि मानो मोदी आज ही पीएम बन गए हों। उन्हें पता नहीं इतनी जल्दी भी ठीक नहीं। फिर भी अच्छी बात है, लेकिन यह उनका अंदर का मामला है।
 हमें तो भाई विकास चाहिए। भ्रष्टाचार मिटाना है। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने हैं। विदेश नीति को दुरुस्त करना है। कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए पोषण उपलब्ध कराना है। दो वक्त की रोटी से वंचित लोगों को रोटी उपलब्ध कराना है। महंगाई पर लगाम कसना होगा। देश की आंतरिक व वाहय सुरक्षा को मजबूत करना होगा। नशे की तरफ बढ़ती युवाओं की प्रवृति रोकनी होगी। आज भी दुर्गम क्षेत्रों में महिलाएं हाड़तोड़ मेहनत करने को मजबूर हैं। गुणवत्तायुक्त शिक्षा से वंचित हैं। इनके लिए बनाई गई योजनाओं के क्रियान्वयन की आवश्यकता है। साथ ही सरकारी व निजी शिक्षा के बढ़ते अंतर को पाटना होगा। गरीब व अमीर के बीच गहरी होते जा रही खाई को पाटने के लिए नए तरीके से सोचना होगा। बाबुओं और अधिकारियों की काम न करने की नकारात्मक प्रवृति को सकारात्मकता में बदलना होगा। देश को जातिवाद, भाषावाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद, नक्सलवाद, माओवाद से निपटना होगा। कर्ज के बोझ को कम करना होगा। आर्थिक विकास दर बढ़ाना होगा। मोदी के लिए हवाई वाह-वाह करने के बजाय, हकीकत से रू-ब-रू होना होगा। भावी प्रधानमंत्री के सामने चुनौतियां कम नहीं है। अगर कोई भी दल अगर प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर रहा हो, उसे पहले देश की वास्तविक नब्ज टटोलनी होगी।

Tuesday, September 10, 2013

स्वयं के यश में मस्त 'आपदा' के विजय




 भगवान केदारनाथ की की पूजा भी जरूरी है। अवश्य होनी चाहिए। जीवन में इसका भी विशेष महत्व है। लेकिन जब देवभूमि में पूजा को लेकर सत्तालोलुप नेताओं को बयानबाजी करने में जो आनंद आ रहा है। यह आनंद भीषण आपदा से प्रभावित लोगों के आंसू पोछने में आता तो निश्चित तौर पर राज्य का विकास होता। आलम यह है कि पिथौरागढ़ से लेकर बागेश्वर व उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग, टिहरी क्षेत्रों में लोग आज भी भूखे सोने का विवश हैं। रोटी, कपड़ा और मकान के लिए तरस रहे हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को केवल अपना यशोगान से मतलब है, इससे अधिक कुछ नहीं...। अगर वास्तव में विकास के लिए गंभीरता से सोचा जाता, अधिकारियों को पारदर्शिता से कार्य करने के लिए सख्त निर्देश दिए गए होते तो आपदा के तीन महीने के बाद भी लोग तरसने को मजबूर नहीं होते। विडंबना ही है कि इन प्रभावित क्षेत्रों में आज किसी की तबियत खराब हो जाए तो उसे दवा देने के लिए एक अदद डाक्टर तक नहीं है। पहले की तरह ही कमीशनखोरी के लिए बनाए गए अस्पताल के भवन भी मुंह चिढ़ा रहे हैं। बाकायदा क्षेत्र में विधायक हैं, नाम के लिए सांसद साहब भी हैं। पर हकीकत में देखें तो हालात बेहद नाजुक हैं। इन जनपदों के प्रभावित क्षेत्रों में लोग बेरोजगार हो गए हैं। आपदा ने उनसे घर छीन लिया, मवेशियों को छीन लिया और पैदल चलने तक के रास्ते भी नहीं छोड़े। पलायन करने को मजबूर प्रभावित लेागों की सुध लेने के बजाय उत्तराखंड की सरकार बेबस व हताश नजर आ रही है। करोड़ों-अरबों रूपये तो मिल ही गए हैं। इस धन का सदुपयोग करने के लिए छोटी-बड़ी तमाम योजनाएं बनाई जा रही हैं, जबकि पहले से ही कई योजनाएं हैं। इन योजनाअेां का क्रियान्वयन के बजाय इस धन के बंदरबांट पर ही अधिक ध्यान दिख रहा है। विपक्षी दल भाजपा ने पूछा कि सरकार श्वेत पत्र जारी करे। आपदा के बजट का हिसाब दे तो कांग्रेस भी कम नहीं, वह भला क्यों हिसाब देती? उसने भी जवाब दिया कि पहले भाजपा 2010 की आपदा का हिसाब दे। फिर कांव-कांव करने वाले विपक्षी दल के नेताओं ने भी चुप्पी साध ली। केवल जनता को बेवकूफ बनाओ और रोटी सेंको।

Sunday, September 8, 2013

खूबसरत शहर के चेहरे पर अतिक्रमण का दाग





   लालच, रसूख, हवस, दबंगई और राजनीतिक अतिक्रमण की चपेट से शहर को मुक्त करने के लिए इस जनपद के जिलाधिकारी रहे सूर्य प्रताप सिंह जैसे हिम्मती अधिकारियों को एक बार फिर तैनात किए जाने की आवश्यकता है, जिससे की शहर के सौन्दर्य को पुनर्जीवित किया जा सके। नया स्वरूप दिया जा सके।

 

गणेश जोशी
    कुमाऊ के प्रवेश द्वार स्थित व्यापारिक, राजनीतिक व शैक्षणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर हल्द्वानी के चेहरे पर अतिक्रमण का दाग गहरा हो चुका है। अतिक्रमण की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। अतिक्रमणकारी बेशर्मी की सारी हदें पार कर चुके हैं। इन्होंने शमशान घाट तक को अतिक्रमण की चपेट में लेना शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय राजमार्ग में तीन से पांच फुट तक की सड़क पर कब्जा कर लिया है। मुख्य बाजार में नालियों के ऊपर पक्का निर्माण कर डाला। अधिकांश आवागमन वाली गलियों को दुकानें में तब्दील कर लिया गया है। वाहियातपना देखिए, पेशाब घर तक बेच डाला। जब दुकानों को आधी सड़क तक पहुंचा दिया जाता है तो भी अति लालची लोगों की हवस शांत नहीं हो पाती है। चंद पैसों के लालच में दुकानों के ठीक आगे ठेला लगवा दिया जाता है। अपनी दुकान के आगे की सड़क के स्वयंभू मालिक बनकर शेष आवागमन के स्थान पर अपना वाहन खड़ा दिया जाता है। इन अतिक्रमणकारियों को न ही बिक चुकी पुलिस का डर है और न ही पीछे से जेब गर्म करने वाले नगर निगम व प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों का। कथित तौर पर विकास का नारा देने वाले सत्तालोलुप व वोटों के लालची जनप्रतिनिधियों को तो ये अतिक्रमणारी आंखें दिखाने लगते है। यहां तक कि जिस विभाग को अतिक्रमण पर निगरानी की जिम्मेदारी है, उसी ने अपनी दुकानें भी अतिक्रमण की भेंट चढ़ाई हैं। इससे खूबसूरत पहाड़ों की तलहटी पर बसे शानदार शहर की शान में बदसूरती का गहरा दाग लगा हुआ है। अनियोजित विकास के साथ अबाध गति से बढ़ती आबादी भी अतिक्रमण के दाग को साफ करने के बजाय और गहरा कर रही है। लालच, रसूख, हवस, दबंगई और राजनीतिक अतिक्रमण की चपेट से शहर को मुक्त करने के लिए इस जनपद के जिलाधिकारी रहे सूर्य प्रताप सिंह जैसे हिम्मती अधिकारियों को एक बार फिर तैनात किए जाने की आवश्यकता है, जिससे की शहर के सौन्दर्य को पुनर्जीवित किया जा सके। नया स्वरूप दिया जा सके। उच्चकों से बचते हुए महिलाएं, बच्चे भी स्वच्छंद होकर बाजार भ्रमण का आनंद ले सकें। उस कार्रवाई के समय की तरह कथित रूप से बड़ों-बड़ों के छक्के छुड़ाए जा सकें। कुछ दिन पहले सिटी मजिस्टेªट व मुख्य नगर अधिकारी आरडी पालीवाल ने बाजार में अतिक्रमण हटाने की अनूठी और हिम्मतभरी पहल तो की थी, लेकिन कार्रवाई एक दिन के बाद फिर नोटिस पर आकर थमने लगी है। जबकि बाहरी तौर पर उन्हें समर्थन तो मिलने लग गया था। व्यापारिक संगठनों के कुछ अतिक्रमणकारी सदस्य भी अपने आकाओं की उम्मीदों पर दुम दबाए बैठ गए थे। खैर, हम लोग तो सकारात्मकता, निष्पक्षता और ईमानदारी से अतिक्रमणकारियों से शहर को मुक्त करने की उम्मीद करते हैं, जिससे कि शहर की शान में चार चांद लग सकें। अभियान जारी रहेगा..., पांच सितंबर को दैनिक जागरण, हल्द्वानी की ओर से पाठक पैनल में अतिक्रमण की समस्या, समाधान और चुनौतियां विषय पर आयोजित चर्चा में शहर के कुछ व्यापारी और कुछ सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग शामिल हुए। सीओ सिटी लोकजीत सिंह भी उपस्थित थे। जब बहस आरंभ हुई तो इस तरह के कई चौंकाने वाली जानकारियों से रू-ब-रू हुए। यूनिट हेड अशोक त्रिपाठी की अध्यक्षता में बहस का संचालन उप संपादक गणेश जोशी ने किया।