Saturday, February 22, 2014

उत्तराखंड में 'आप' के तीन तरह के नेता


    उत्तराखंड में आप का नाटक देखने में मजा आ रहा है। अरविंद केजरीवाल जी जरा उत्तराखंड में आप भी अपनी पार्टी पर नजर दौड़ायें तो आपको भी अजब-गजब स्थिति देखने को मिलेगी। लोकसभा चुनाव होने को हैं। भाजपा व कांग्रेस के साथ ही आप भी तैयारी में जुटी है। ऐसे समय में उत्तराखंड में आप पार्टी में तीन तरह के नेता नजर आ रहे है। इसमें हर नेता अपने को सांसद से कम नहीं समझ रहा है। उसे टिकट मिलेगा या नहीं, स्थिति जो भी होगी लेकिन मैं आपको तीन तरह के नेताओं के बारे में बताना चाहता हूं। जिसे पढ़कर शायद आप भी चौंक जायेंगे।
 
1- इसमें ऐसे नेता है जो जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे हैं, उन्हें सिर्फ आम आदमी से मतलब है।
2- इसमें ऐसे नेता हैं, जो ओछे टाइप के हैं। जिन्हें कहीं जगह नहीं मिली वह आप में आ गए। उन्हें जमीनी स्तर पर आम आदमी से कोई लेना-देना नहीं है। विचारों से शून्य हैं। उन्हें तो सिर्फ आप के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी हैं। अपने नाम से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर देनी है।
3- इसमें ऐसे नेता है जो स्वयं को प्रकांड विद्वान समझते हैं। यह लोग पहाड़ के हितैषी हैं। पहाड़ के दर्द को बखूबी समझते हैं। पहाड़ के विकास को लेकर प्रतिबद्ध रहते हैं। आदि-आदि।

चाहें तो आप भी खूब टिप्पणी कर सकते हैं। इसे सहेजा जाएगा। इस पर और आगे लेख तैयार हो सकेंगे। एक और टिप्पणी करना चाहता हूं। जब उत्तराखंड में एक क्षेत्रीय दल था। जिसका बुरा हाल यहां के भ्रष्ट, कथित, घमंडी, पदलोलुप, चालाक, महत्वाकांक्षी नेताओं ने कर दिया। इसे हम आप सभी भलीभांति जानते हैं। ऐसे में तीसरे विकल्प के रूप में 'आप' का बेहतर अस्तित्व उत्तराखंड को मिल पाएगा। जल्द उम्मीद करना बेइमानी सा प्रतीत हो रहा है। जय हो...

Friday, February 14, 2014

आंदोलन किया बन गए नेता करोड़पति



नेता कैसे हैं, उन्हें समझना कठिन है। अगर हकीकत में देखेंगे तो आपको भी ऐसे नेताओं को देखकर शर्म आने लगेगी। आज हम सब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को देख रहे हैं। हर आम आदमी के हितों को ध्यान में रखते हुए खास आदमी के बारे में सोच रहे हैं। उनके खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं। सराहनीय है। देश हित में होगा। आम आदमी को उनका हक मिलेगा। भुखमरी, बेरोजगारी, महंगााई व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। अगर यही हाल रहा तो ठीक है अगर अन्य नेताओं की तरह किसी कंपनी या फिर नेता के खिलाफ आवाज उठाने के बाद उसे हाथ मिला लेते हैं। लेन-देन हो जाता है। सत्ता में आने पर अन्य गलत कार्यों को सही ठहराने की सहमति बन जाती है। कुछ दिन किसी के खिलाफ धरना देने के बाद फिर मुंह मोड लेते हैं। हमें लगता है कि यही हमारा नेता है। हकीकत में परदे के पीछे कुछ और हो चुका होता है। हमारे आसपास कोई भी नेता जब अचानक ऐसे आंदोलन के बाद लखपति व करोडपति हो जाता है। आपने सोचा नहीं, क्यों? सोचा तो फिर ऐसा नेता क्यों?

Sunday, February 2, 2014

उत्तराखंड आओ सीएम सीएम खेलें



नौ नवंबर 2000 को राज्य बना। उम्मीदें बहुत थी। राज्य के लिए मर मिटने वालों ने जो सपने संजोए थे, वह 13 साल में भी पूरे नहीं हो सके। सपने उनके पूरे हुए, जो ग्राम प्रधान तक नहीं बन सकते थे, आज सीएम सीएम खेल रहे हैं।




दृश्य एक...
उत्तराखंड देश का ऐसा राज्य बन गया है, जहां हर नेता को सीएम सीएम खेलने में मजा आ रहा है। उसे राज्य के मूलभूत विकास से कोई लेना-देना नहीं है। रोजगार की योजनाओं से मुंह मोड़ चुका है। गरीबी से उसे कोई मतलब नहीं। विकास योजनाएं उसे तब तक अच्छी लगती हैं, जब तक उसे कमीशन नहीं मिल जाता है। जब कमीशन मिला तो हो गया विकास। प्रकृति की सुरम्य वादियों में बसे छोटे से राज्य उत्तराखंड की खूबसूरती पर नेताओं की कुदृष्टि इसे पैदा होते समय ही पड़ गई थी। नौ नवंबर 2000 को राज्य बना। उम्मीदें बहुत थी। राज्य के लिए मर मिटने वालों ने जो सपने संजोए थे, वह 13 साल में भी पूरे नहीं हो सके। सपने उनके पूरे हुए, जो ग्राम प्रधान तक नहीं बन सकते थे, आज सीएम सीएम खेल रहे हैं। उनके लिए सीएम बनना तो महज ब्लाक प्रमुख बनने जैसा हो गया है। सीएम सीएम खेलते-खेलते नौ नवंबर 2000 से एक फरवरी 2014 तक आठवें सीएम हरीश रावत पद व गोपनीयता की शपथ ले चुके हैं। अब यह क्या करिश्मा दिखायेंगे, वक्त तय करेगा लेकिन यहां पर सीएम सीएम खेलने के दृश्य पर नजर डालेंगे तो आप भी आश्चर्य में पड़ जायेंगे।

दृश्य दो...
राज्य बना नेताओं की मौज आ गई। पहले मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी नित्यानंद स्वामी की हुई। यहीं से प्रदेश की राजनीति का स्तर घटिया होने लगा। जब नित्यानंद विराजमान थे तो दूसरे गुट के भगत सिंह कोश्यारी की हसरतें कुलाचें मारने लगी। अंतरिम सरकार के दिन पूरे होते उन्हें भी सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। वर्ष 2002 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। कांग्रेस के हाथ बाजी लग गई। कांग्रेस हाईकमान ने नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन फिर हरीश रावत को निराश होना पड़ गया। पांच साल निकल तो गए लेकिन दूसरे गुट की बेचैनी कम नहीं हुई। वर्ष 2007 में दूसरे विधानसभा चुनाव हुए। इसमें भाजपा ने बाजी मार ली। यहां फिर सीएम सीएम खेलने में विकास की तो हवा निकल गई लेकिन सांसद सेवानिवृत मेजर जनरल भुवन चन्द्र खंडूड़ी को कुर्सी सौंप दी गई। फिर क्या था? दूसरे गुट ने खंडूड़ी को विकास विरोधी बताना शुरू कर दिया। जैसे तैसे सीएम कड़क अंदाज में चल रहे थे तो फिर सीएम सीएम खेलने के दौरान डा. रमेश पोखरियाल निशंक सीएम बना दिए गए। कुछ समय बाद यह भी नहीं चल पाए तो, पांच साल के शासन में फिर बीसी खंडूड़ी को सीएम बना दिया। ईमानदारी की मिसाल पेश कर दी गई। 2012 में चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी भाजपा से केवल एक सीट आगे रही और सरकार बनाने में कामयाब हो गई। फिर कांग्रेस हाईकमान ने सांसद विजय बहुगुणा को सीएम बना दिया। दूसरे गुट ने प्रदेश में हल्ला मचा दिया, विकास तो ठप हुआ लेकिन सीएम सीएम खेल शुरू हो गया। सीएम बहुगुणा गए और केन्द्र सरकार में जल संसाधन मंत्री मंत्री हरीश रावत को कुर्सी सौंप दी।
अब तो जय हो.... उत्तराखंड का।