Saturday, February 23, 2013

व्यंग्य, बेबाकी और संवेदनशीलता



उप्रेती हमेशा जीवन से संघर्ष करते रहे। सिद्धांतों के साथ जीने वाले उप्रेती ने अपने लेखनी के जरिए पहचान बनाई। वह युवा पत्रकारों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।



सामाजिक व व्यवस्थागत विसंगतियों पर प्रहार, पहाड़ी जीवन में आ रहे क्षरण पर चिंता, पलायन, मनुष्यता का पतन वरिष्ठ कथाकार व पत्रकार आनंद बल्लभ उप्रेती की लेखनी में झलकता रहा। राजनैतिक हृास, भटकाव व सांस्कृतिक अवमूल्यन के साथ ही ज्वलंत विषयों पर बेबाकी से संवदेनशीलता दर्शाते हुए व्यंगात्मक अंदाज में लिखी उनकी कहानियां और लेख हमेशा चर्चा का विषय बनी रही। शुक्रवार को उनकी असमय मौत ने पत्रकारिता व साहित्य जगत को सूना कर दिया।
पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट ब्लाक के गांव कुंजनपुर में 21 मई 1944 में जन्मे आनंद बल्लभ उप्रेती की प्राथमिक शिक्षा गांव में और उच्च शिक्षा अल्मोड़ा व हल्द्वानी में हुई थी। शिक्षक से पत्रकारिता के क्षेत्र में जाना उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था। पत्रकारिता में सरिता 1966, संदेश सागर 1967 पत्रिकाओं से शुरुआत की। स्वर्गीय दुर्गा सिंह मर्तोलिया के साथ मिलकर 1978 से पहले साप्ताहिक पिघलता व्यंग्य, बेबाकी और संवेदनशीलता


उप्रेती हमेशा जीवन से संघर्ष करते रहे। सिद्धांतों के साथ जीने वाले उप्रेती ने अपने लेखनी के जरिए पहचान बनाई। वह युवा पत्रकारों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।


सामाजिक व व्यवस्थागत विसंगतियों पर प्रहार, पहाड़ी जीवन में आ रहे क्षरण पर चिंता, पलायन, मनुष्यता का पतन वरिष्ठ कथाकार व पत्रकार आनंद बल्लभ उप्रेती की लेखनी में झलकता रहा। राजनैतिक हृास, भटकाव व सांस्कृतिक अवमूल्यन के साथ ही ज्वलंत विषयों पर बेबाकी से संवदेनशीलता दर्शाते हुए व्यंगात्मक अंदाज में लिखी उनकी कहानियां और लेख हमेशा चर्चा का विषय बनी रही। शुक्रवार को उनकी असमय मौत ने पत्रकारिता व साहित्य जगत को सूना कर दिया।
पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट ब्लाक के गांव कुंजनपुर में 21 मई 1944 में जन्मे आनंद बल्लभ उप्रेती की प्राथमिक शिक्षा गांव में और उच्च शिक्षा अल्मोड़ा व हल्द्वानी में हुई थी। शिक्षक से पत्रकारिता के क्षेत्र में जाना उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था। पत्रकारिता में सरिता 1966, संदेश सागर 1967 पत्रिकाओं से शुरुआत की। स्वर्गीय दुर्गा सिंह मर्तोलिया के साथ मिलकर 1978 से पहले साप्ताहिक पिघलता हिमालय समाचार पत्र निकाला। 1980 में एक वर्ष दैनिक समाचार पत्र के रुप में निकाला इसके बाद से अब तक वह साप्ताहिक समाचार पत्र के संपादक रहे। नवभारत टाइम्स, नैनीताल समाचार, दिनमान के संवाददाता भी रहे। उनकी चर्चित कहानी संग्रह 'आदमी की बू' व 'घौंसला में उनकी' पत्रकारीय तीक्ष्ण दृष्टि की झलक मिलती है। उत्तराखंड आंदोलन के संदर्भ में लिखी पुस्तक 'उत्तराखंड आंदोलन में गधों की भूमिका' तमाम राजनेताओं व मुद्दों पर व्यंग्य पर आधारित है। 'राजजात के बहाने' पुस्तक के लिए उन्हें पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार की ओर से राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार से नवाजा गया था। उत्तराखंड सरकार की ओर से सारस्वत साधना सम्मान समेत कई अन्य पुरस्कार उन्हें प्राप्त हो चुके हैं। एक सप्ताह पहले 'हल्द्वानी स्मृतियों के झरोखे' से व 'नंदा राजजात के बहाने' का द्वितीय संस्करण का विमोचन हुआ था। उप्रेती हमेशा जीवन से संघर्ष करते रहे। सिद्धांतों के साथ जीने वाले उप्रेती ने अपने लेखनी के जरिए पहचान बनाई। वह युवा पत्रकारों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। 22 फरवरी 2013 को उनके निधन से साहित्य व पत्रकारिता जगत में सन्नाटा पसर गया।हिमालय समाचार पत्र निकाला। 1980 में एक वर्ष दैनिक समाचार पत्र के रुप में निकाला इसके बाद से अब तक वह साप्ताहिक समाचार पत्र के संपादक रहे। नवभारत टाइम्स, नैनीताल समाचार, दिनमान के संवाददाता भी रहे। उनकी चर्चित कहानी संग्रह 'आदमी की बू' व 'घौंसला में उनकी' पत्रकारीय तीक्ष्ण दृष्टि की झलक मिलती है। उत्तराखंड आंदोलन के संदर्भ में लिखी पुस्तक 'उत्तराखंड आंदोलन में गधों की भूमिका' तमाम राजनेताओं व मुद्दों पर व्यंग्य पर आधारित है। 'राजजात के बहाने' पुस्तक के लिए उन्हें पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार की ओर से राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार से नवाजा गया था। उत्तराखंड सरकार की ओर से सारस्वत साधना सम्मान समेत कई अन्य पुरस्कार उन्हें प्राप्त हो चुके हैं। एक सप्ताह पहले 'हल्द्वानी स्मृतियों के झरोखे' से व 'नंदा राजजात के बहाने' का द्वितीय संस्करण का विमोचन हुआ था। उप्रेती हमेशा जीवन से संघर्ष करते रहे। सिद्धांतों के साथ जीने वाले उप्रेती ने अपने लेखनी के जरिए पहचान बनाई। वह युवा पत्रकारों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। 22 फरवरी 2013 को उनके निधन से साहित्य व पत्रकारिता जगत में सन्नाटा पसर गया।