बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं
और नदियों के किनारे घर बने हैं ।
चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर
इन दरख्तों के बहुत नाज़ुक तने हैं ।
इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं
जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं ।
आपके क़ालीन देखेंगे किसी दिन
इस समय तो पाँव कीचड़ में सने हैं ।
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं ।
अब तड़पती-सी ग़ज़ल कोई सुनाए
हमसफ़र ऊँघे हुए हैं, अनमने हैं ।
-दुष्यन्त कुमार
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