भ्रष्टाचार कहां है और कैसे होता है? किस-किस स्तर पर होता है? कौन भ्रष्टाचार करता है? कितने प्रकार है यह भ्रष्टाचार? न जाने कितने सवाल लोगों के मन में कौंध रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे तो महज एक प्रतीक हैं लेकिन भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए जन लोकपाल बिल के अलावा और क्या हो सकता है? यह प्रश्न भी नई पीढ़ी के मन में कौंध रहा है। गली-मोहल्लों से लेकर पान की दुकान हो या समाचार पत्रों का कार्यालय, सरकारी कार्यालय हो या फिर पियक्कड़ों की जमात ही क्यों न हो। जिधर नजर दौड़ायें अन्ना के आंदोलन पर जबरदस्त तर्क-वितर्क से लेकर कुतर्क तक हो रहे हैं। समर्थन का जहां तक सवाल है, इसमें कोई पीछे नहीं हैं। भले ही वह गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबा ही क्यों न हो। या फिर सुबह से शाम तक भ्रष्टाचार में ही लिप्त क्यों न रहता हो। इसमें कांग्रेस पार्टी को छोड़कर बाकी सभी दलों के कार्यकर्ता हो या डाक्टर, वकील, व्यापारी, छात्रनेता या राजनेता पूरी तरह समर्थन में नजर आ रहे हैं। अन्ना के समर्थन का जनसैलाब छोटे-छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरों तक जबरदस्त तरीके से फैल रहा है। अन्ना के समर्थक टेलीविजन के स्क्रीन पर दहाड़ मारते हुए समाचार पत्रों के मुख पृष्ठ तक झंडे-बैनरों के साथ चलते दिखायी पड़ रहे हैं। केन्द्र सरकार के इस सशर्त आंदोलन में सिविल सोसाइटी का जन लोकपाल बिल संसद में पारित होगा या नहीं। इसकी पूरी उम्मीद करना तो अभी बेवकूफी होगी। लेकिन इस समय देश में जो माहौल है, इससे लोगों में भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्सा साफ झलक रहा है। भ्रष्टाचार में ही लिप्त लोग भले ही अन्ना के समर्थकों में क्यों न हों, लेकिन हर आदमी भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना चाहता है। लेकिन क्या उम्मीद की जा सकती है कि जिस तरह केवल बाहरी समर्थन के लिए जबरदस्त भीड़ जुट रही हैं, लोग क्या इसी सोच के साथ भ्रष्टाचार से लडऩे का संकल्प लेंगे? हर शहर में जितने लोग अन्ना के समर्थन के नाम पर अनशन, धरना-प्रदर्शन और जुलूस निकाल रहे हैं, क्या उसी अंदाज में दैनिक जीवन में भ्रष्टाचार से लडऩे का वास्तविक रूप दिखेगा। नये उम्मीद के साथ...
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