Tuesday, August 16, 2011

मत कहो, आकाश में

 

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।

सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।

इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।

पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं
बात इतनी है कि कोई पुल बना है।

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।

हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।

दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है
आजकल नेपथ्य में संभावना है ।

-दुष्यन्त कुमार

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