Saturday, October 13, 2012

संघर्षों से निकले जनकथाकार मटियानी

 अत्यंत निर्धन परिवार में जन्मे शैलेश ने अल्मोड़ा में बूचड़खाने तक में कार्य करने को विवश होना पड़ा। इसके बाद दिल्ली, मुंबई, इलाहाबाद में संघर्ष करते रहे। बचपन से ही लेखक बनने की चिनगारी तमाम विपदाओं में भी जलती रही।


बचपन से ही लेखक बनने की प्रबल इच्छा रखने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार शैलेश मटियानी को गोर्की के समकक्ष व प्रेमचन्द्र से आगे का साहित्यकार किसी ने यों ही नहीं कहा है। उन्होंने कठिन संघर्षों में जीवन व्यतीत करते हुए समाज के दबे, कुचले, भूखे, नंगों पर मार्मिकता से यथार्थ चित्रण किया। हिंदी साहित्य में आंचलिक कथाकार के रूप में ख्याति अर्जित की।
 उन्होंने जीवनपर्यंत ऐसी कलम चलाई की आम आदमी की पीड़ा का जीवंत चित्रण कर दिया। उनकी 30 से अधिक उपन्यास, कहानियां, लेख हैं। अल्मोड़ा जनपद के बाड़ेछीना में 14 अक्टूबर 1931 को जन्मे शैलेश मटियानी ने हाईस्कूल तक पढ़ाई की और पचास वर्ष तक लेखन कार्य में सक्रिय रहे। माता-पिता का देहांत 12 वर्ष की उम्र में हो गया था। वह उस समय पांचवी कक्षा में पढ़ते थे। अत्यंत निर्धन परिवार में जन्मे शैलेश  को बचपन से ही तमाम विपदाए को झेलने को मजबूर होना पड़ा. अल्मोड़ा में बूचड़खाने तक में कार्य करने को विवश होना पड़ा। इसके बाद दिल्ली, मुंबई, इलाहाबाद में संघर्ष करते रहे। बचपन से ही लेखक बनने की चिनगारी तमाम विपदाओं में भी जलती रही। उनकी रचनाओं में उपेक्षित, बेसहारा लोग कहानी के पात्र हैं। दलित जीवन को भी व्यापकता से उभारा है। उनके कहानी व पात्रों के नाम भी गोपुली, नैन सिंह सुबेदार, सावित्री, गफूरन आदि हैं। रचनाओं में गहरी मानवीय संवेदनाएं हैं। साहित्यकार को कुमाऊं विश्वविद्यालय ने 1994 डीलिट् की मानद उपाधि से नवाजा था।  देहावसान २४ अप्रैल २००१ को हुआ.
उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार का संस्थागत सम्मान शारदा सम्मान, केडिया संस्थान से साधना सम्मान, उत्तर प्रदेश सरकार से लोहिया पुरस्कार से नवाजा गया है। साथ ही उनके लेखन पर भी शोध हो चुका है। उन्होंने जनपक्ष, विकल्प पत्रिकाओं का भी संपादन किया।
साहित्यकार दिनेश कर्नाटक कहते हैं कि वह पहले ऐसे रचनाकार थे, जिन्होंने पर्वत, झरने, नदियों के अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्तियों की पीड़ा को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया। उनका साहित्य के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान है। मटियानी हिंदी साहित्य में आंचलिक कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं।
ये हैं उपन्यास
उगते सूरज की किरन, पुनर्जन्म के बाद, भागे हुए लोग, डेरे वाले, हौलदार, माया सरोवर, उत्तरकांड, रामकली, मुठभेड़, चन्द औरतों का शहर, आकाश कितना अनन्त है, बर्फ गिर चुकने के बाद, सूर्यास्त कोसी, नाग वल्लरी, बोरीवली से बोरीबंदर तक, अर्धकुम्भ की यात्रा, गापुली गफूरन आदि उपन्यास हैं।
कहानी संग्रह
पाप मुक्ति तथा अन्य कहानियां, सुहागिनी तथा अन्य कहानियां, अतीत तथा अन्य कहानियां, हारा हुआ, सफर घर जाने से पहले, छिंदा पहलवान वाली गली, भेड़े और गड़रिये, तीसरा सुख, बर्फ की चट्टानें, अहिंसा तथा अन्य कहानियां, नाच जमूरे नाच, माता तथा अन्य कहानियां, उत्सव के बाद, शैलेश मटियानी की प्रतिनिधि कहानियां आदि। तमाम लेखों का संग्रह व बाल साहित्य की रचनाएं भी है।

No comments:

Post a Comment

Thanks