Wednesday, January 18, 2012

दिखते ही नहीं कौवे तो बुलायें किसे


कौवे बुलाने की परंपरा कुमाऊं में वर्षों से चली आ रही है। कौवे को बुलाना पूर्वजों को याद करना भी माना जाता रहा है। इसके अलावा यह पक्षी अन्य परंपराओं से जुड़ा होने के साथ ही वातावरण को स्वच्छ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आलम यह है कि अब यह पक्षी न ही घरों के आगे मंडराते हुए दिखता और न ही घुघुति खाने आ रहा है।
मान्यता है कि कौवे मकर संक्रांति के दिन पितरों के रूप में एक दिन हमसे मिलने आते हैं। इसके अलावा मंदिरों में पूजा-अर्चना के बाद सबसे पहले कौवे को खिलाया जाता है। प्राचीन समय से ही कुमाऊंनी रीति-रिवाजों में कौवे का विशेष महत्व है। घुघुति के दिन तो बकायदा कौवे को घर पर बुलाया जाता है। घरों की छत पर पकवान रखा जाता है, और बच्चे घुघुत की माला गले में डालकर आवाज लगाते हैं। विडंबना है कि अब कौवे बुलाने की परंपरा महज औपचारिक होते जा रही है। खासकर शहरी क्षेत्रों में कौवे अब ढूंढने से भी नहीं मिल रहे हैं। किवंदती है कि कुमाऊं के एक राजा को ज्योतिषियों ने अवगत कराया कि उसकी मौत कौवों के हमले से हुई होगी। राजा घुघुत ने अपने स्वरूप के आटे की मूर्तियां बनायी और कौवों को खिला दी। इससे उसे जीवनदान मिला। कुमाऊं में इस त्यौहार को कत्यूर राजाओं से भी जोड़कर देखा जाता है। प्रभागीय वनाधिकारी पराग मधुकर धकाते बताते हैं कि वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग की वजह से गौरेया की तरह कौवों की संख्या भी कम हो गयी है। वाइल्ड टस्कर सोसाइटी के संस्थापक विकास किरौला कहते हैं कि कौवा प्रकृति की सफाई करता है। गाय, बैल, भैंस व अन्य मरने जानवरों को खाता है। इससे प्रकृति में सफाई बनी रहती थी। इनकी संख्या कम होना चिंता का विषय है। सामान्यता कौवे तीन तरह के होते हैं। इसमें घेरलू कौवा, जंगली कौवा और महाकाक (रेवन क्रो)। घरेलू कौवा घरों के आसपास रहता है, जंगली कौवा जंगलों में महाकाक घने जंगलों में निवास करता है। कौवा खुद शिकार नहीं करता है। फेंका हुआ खाना और मरे जानवरों को ही खाता है। इसके अलावा जानवरों के इलाज में डाइक्लोफेनिक दवा का इस्तेमाल होता था। इन जानवरों के मरने के बाद जब कौवे इन्हें खाते थे तो उनका लीवर खराब हो जाता था और इनकी मृत्यु हो जाती थी। इसके चलते भी इनकी संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ। अब इस दवा को भारत में बंद कर दिया है। इसके बदले दूसरी दवा बाजार में आ चुकी है।
काले कौवा काले-काले, घुघुति माला खाले
तू लिजा बड़, मैं कैं दीजा सूना घड़...।

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